लखनऊ।दिल्ली की तरह जम्मू-कश्मीर भी केंद्र शासित राज्य है। 5 अगस्त 2019 को धारा 370 और 35ए खत्म होने के बाद अब तक जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल ही प्रशासक के रूप में काम कर रहे थे।मंगलवार को विधानसभा चुनाव के घोषित नतीजों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को बहुमत मिल गया है। जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला सरकार बनाने जा रहे हैं।अब ऐसे में केंद्र में भाजपा सरकार और जम्मू-कश्मीर में एनसी और कांग्रेस की सरकार होगी।अब लोगों के दिमाग में ये ख्याल आ रहा होगा कि क्या जम्मू-कश्मीर में भी दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार वाला हाल होगा।उपराज्यपाल से विवाद अगले पांच सालों तक चलता रहेगा तो जानिए संविधान क्या कहता है।
उपराज्यपाल समय-समय पर विधानसभा को ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन के लिए बुलाएगा,जिसे वह ठीक समझे। हालांकि एक सत्र में इसकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा।
उपराज्यपाल समय-समय पर सदन के सत्र को समाप्त या विधानसभा को भंग कर सकता है।
विधानसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में उपराज्यपाल विधानसभा को संबोधित करेंगे और विधानसभा को अपने आह्वान के कारणों की जानकारी देंगे।
उपराज्यपाल विधानसभा को संबोधित कर सकेगा और उस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
उपराज्यपाल विधानसभा को संदेश भी भेज सकेगा, चाहे वह विधानसभा में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में हो या अन्यथा और जब संदेश इस प्रकार भेजा जाता है, तो विधानसभा उस संदेश द्वारा विचार किए जाने के लिए अपेक्षित किसी भी मामले पर सुविधाजनक शीघ्रता से विचार करेगी।
विधानसभा का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व उक्त संघ राज्यक्षेत्र के उपराज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष इस अधिनियम की चौथी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
कोई विधेयक या संशोधन उपराज्यपाल की सिफारिश के बिना विधानसभा में प्रस्तुत या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा।
जब कोई विधेयक विधानसभा द्वारा पारित कर दिया जाता है, तो उसे उपराज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और उपराज्यपाल या तो यह घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या उस पर अनुमति रोक लेता है या वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है। सिर्फ धन विधेयक को इससे छूट है।
उपराज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में जम्मू- कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभा के समक्ष उस वर्ष के लिए संघ राज्य क्षेत्र की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा।
विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या के दस प्रतिशत से अधिक सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद होगी और इसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा। यह उन विषयों से संबंधित अपने कार्यों के प्रयोग में उपराज्यपाल को सहायता और सलाह देगा, जिनके संबंध में विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति है।
उपराज्यपाल अपने कार्यों के प्रयोग में किसी मामले में अपने विवेक से कार्य करेगा।उपराज्यपाल का अपने विवेक से लिया गया निर्णय अंतिम होगा और उपराज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की वैधता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेक से कार्य करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था।
मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।मंत्री उपराज्यपाल की इच्छा से पद धारण करेंगे। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियम बनाएगा।इसमें उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद या किसी मंत्री के बीच मतभेद की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया भी शामिल है। उपराज्यपाल की सभी कार्यकारी कार्रवाई, चाहे वह उसके मंत्रियों की सलाह पर की गई हो या अन्यथा, उपराज्यपाल के नाम से की गई मानी जाएगी।
यदि राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल से रिपोर्ट प्राप्त होने पर या अन्यथा पता लगता है कि वहां ऐसी अवांक्षित स्थिति उत्पन्न हो गई है तो वो कार्रवाई कर सकते हैं।
बता दें कि कुल मिलाकर संविधान यही कहता है कि उमर अब्दुल्ला को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ मिलकर सरकार चलाना होगा। अगर उमर अब्दुल्ला राष्ट्रिय उद्देश्यों से टकराने या अन्य किसी तरह का टकराव करते हैं तो उनके लिए सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा।