लखनऊ।उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं।इनकी शुरुआत हुई हाल ही में हुए हरियाणा,जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र में चल रहे विधानसभा चुनाव में सपा की उपेक्षा से।कांग्रेस ने इन राज्यों में सपा को सीटें नहीं दी है।जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में समझौता नहीं हो पाया।इसके बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव लड़ने से भी इनकार कर दिया,जबकि सपा ने कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ी थीं।इसके बाद अब लगने लगा है कि सपा और कांग्रेस के रिश्ते वैसे नहीं रहे,जैसे लोकसभा चुनाव के बाद थे।सपा और कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव भी मिलकर ही लड़ा था,लेकिन यह गठबंधन बहुत सफल नहीं हो पाया था।इसके बाद सपा ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ लिया था।इसके बाद दोनों दल 2024 के लोकसभा चुनाव में ही एक साथ आए।
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी में जगह न मिलने से नाराज सपा ने आठ सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं।इनमें से मानखुर्द शिवाजीनगर और भिवंडी ईस्ट विधानसभा सीट पर एमवीए ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। 2019 के विधानसभा में ये दोनों सीटें सपा ने जीती थीं।सपा ने यहां से अपने पुराने विधायकों को चुनावी मैदान में उतारा है।मानखुर्द शिवाजीनगर से सपा प्रदेश अध्यक्ष अबु आजमी और भिवंडी ईस्ट से रईश शेख चुनाव लड़ रहे हैं।इनके अलावा मालेगांव सेंट्रल से शान ए हिंद निहाल अहमद,धुले सिटी से इरशाद जागीरदार,भिवंडी वेस्ट से रियाज आजमी,तुलजापुर से देवानंद साहेबराव रोचकरी, परांडा से रेवण विश्वनाथ भोसले,औरंगाबाद पूर्व से डॉक्टर अब्दुल गफ्फार कादरी सैय्यद और भायखला से सईद खान को सपा ने प्रत्याशी बनाया है।इन छह सीटों पर सपा और एमवीए में फ्रेंडली फाइट देखने को मिलेगी।
इस घटनाक्रम के बाद यह साफ होने लगा है कि कांग्रेस और सपा के रिश्ते सामान्य नहीं रहे।इसलिए अब दोनों दल आमने-सामने हैं।ऐसा पहली बार नहीं है, जब सपा और कांग्रेस आमने-सामने आए हैं।इससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी सपा और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे।सपा ने जम्मू-कश्मीर की 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था।कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस,माकपा और पैंथर पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा।अब सबकी जुबान पर सवाल यही है कि क्या सपा और कांग्रेस का गठबंधन सामान्य रह गया है।सपा और कांग्रेस की इस नूराकुश्ती को सियासी सौदेबाजी भी कस सकते हैं।दोनों दल अपने-अपने स्ट्रांगहोल्ड वाले इलाकों में एक दूसरे की औकात बता रहे हैं।
यूपी में विधानसभा का चुनाव 2027 में होगा,लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने इसकी तैयारी अभी से शुरू कर दी है। नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है।सभी नौ सीटों पर सपा अकेले लड़ रही है।कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।सपा ने पहले सात सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे।दो सीटें सपा ने कांग्रेस के लिए छोड़ दी थीं।इसके बाद कहा जाने लगा कि कांग्रेस गाजियाबाद सदर और खैर सीट के साथ ही फूलपुर सीट भी चाहती है और सपा इसके लिए तैयार भी हो गई है, लेकिन बाद में खबर आई कि कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है।कांग्रेस ने कहा कि इंडिया गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए उसने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।हालांकि ऐसी भी खबरें थीं कि मनपंसद सीटें न मिलने से कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से इनकार किया है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र में एमवीए से 12 सीटें मांगी थीं।अखिलेश यादव ने कहा था कि वो कम पर भी समझौता करने को तैयार हैं,लेकिन एमवीए ने अखिलेश यादव की बात को तवज्जो नहीं दी।इसके बाद से ही सपा-कांग्रेस के रिश्ते सामान्य रहने की चर्चा शुरू हो गई,लेकिन क्या परिस्थितियां ऐसी हैं कि सपा और कांग्रेस यूपी में अकेले-अकेले चुनाव लड़ सकें।यूपी में इस गठबंधन का मुकाबला भाजपा से है,भाजपा विजय रथ पर सवार है।यूपी में लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी भाजपा ने हरियाणा में जीत हासिल की है।इसके बाद से भाजपा हौंसले बुलंद हैं। यूपी में कांग्रेस और सपा का अकेले-अकेले भाजपा का मुकाबला कर पाना मुश्किल नजर आता है।यूपी में भाजपा भी अकेले नहीं है।भाजपा चार और सहयोगी भी हैं,जो मजबूत वोट बैंक वाली पार्टियां हैं।
यूपी में कांग्रेस को एक मजबूत गठबंधन सहयोगी की जरूरत है,जिसके सहारे कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत सके। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट जीत पाई थी।हाल यह हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी चुनाव हार गए थे,लेकिन सपा का साथ मिलने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न केवल अमेठी और।रायबरेली सीटें जीती बल्कि चार और सीटें भी जीत लीं।कांग्रेस अकेले लड़कर शायद यह कारनामा न कर पाती।इसलिए कांग्रेस को सपा का साथ ज्यादा जरूरी है।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद से मुसलमान कांग्रेस से जुड़े हैं।यूपी में सपा का मजबूत वोट बैंक मुसलमानों को माना जाता है।कांग्रेस इसमें सेंध लगा सकती है।कांग्रेस आरक्षण और संविधान बचाने के नाम पर दलितों को अपने साथ गोलबंद करने की कोशिश पहले से ही कर रही है। सपा के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) दलित और मुसलमान महत्वपूर्ण हिस्सा है।ऐसे में इन दोनों समुदायों में किसी तरह का बंटवारा रोकने के लिए गठबंधन इन दोनों दलों के लिए जरूरी है।