नई दिल्ली।हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा 31 जुलाई को हिन्दी वर्तमान समय में प्रेमचंद की प्रासंगिकता विषय पर ममता कालिया की अध्यक्षता में संगोष्ठी का आयोजन ओर अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक प्रेमचंद कृत निर्मला का विमोचन किया गया।मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर कुमुद शर्मा,उपाध्यक्ष साहित्य अकादमी उपस्थित रहीं।वक्ताओं के रूप में इग्नू के डॉ. जितेंद्र श्रीवास्तव,डॉ. अजय नावरिया और अंशु कुमार चौधरी ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए।
हिंदी अकादमी दिल्ली के सचिव संजय कुमार गर्ग ने कार्यक्रम का आरंभ करते हुए कहा कि प्रेमचंद ने अपनी पुस्तकों में स्त्रियों के उत्थान और उनकी शिक्षा आदि पर ज़ोर दिया,जिनकी प्रासंगिकता आज भी है।प्रकाशन विभाग में नयी पुस्तकों को जोड़ा गया है और पुरानी पुस्तकों का पुनः प्रकाशन किया गया है।इसी कड़ी में महान साहित्यकार श्री प्रेमचंद जी के सुप्रसिद्ध उपन्यास निर्मला का नाट्य रूपांतर किया गया,जिसके लिए में नाटककार श्री सुरेन्द्र शर्मा का धन्यवाद करना चाहूंगा।आगे भविष्य में भी इसी प्रकार की पुस्तकों का प्रकाशन किया जाएगा।संजय कुमार गर्ग ने कार्यक्रम में आने की स्वीकृति प्रदान करने के लिए अध्यक्ष, मुख्य अतिथि तथा सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया।
श्रीमती ममता कालिया ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि प्रेमचंद वो लेखक थे जो जीवन से सट के चलते थे।आंख खोलने वाले निबंध लिखे।उनकी कहानियों,उपन्यासों में जीवन का सार मिलता है।ममता कालिया ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन में सार्वभौमिकता सुलभता मिलती है।प्रेमचंद को पढ़़ने से जीना आता है।
मुख्य अतिथि डॉ. कुमुद शर्मा ने प्रेमचंद की पत्रकारिता पर बात की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने उस समय पत्रकारिता की जब स्वाधीनता को पाने की कल्पना थी।उर्दू पत्र जमाना से आरंभ किया। उनकी रचनाएं युवाओं को स्वाधीनता और संघर्ष के लिए तैयार करती थीं।
जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद ने पारिवारिक मूल्यों को ऊपर रखा।ग़बन कहानी में पति की सम्पत्ति में पत्नी का अधिकार दिखाया,स्त्रियों की शिक्षा,विधवा विवाह आदि बिंदुओं पर आज से 100 वर्ष पहले लिखा जो आज प्रासंगिक हैं।वो ऐसे राष्ट्र की कल्पना करते थे,जिसमें कोई भेदभाव ना हो,सबको बराबरी का मौका मिलना चाहिए।
अजय नावरिया ने अपने वक्तव्य में कहा कि अगर अभी भी प्रेमचंद के साहित्य में अभी भी प्रासंगिकता ढूंढी जा रही है तो इसका अर्थ है की समाज ने अभी भी उन्नति नहीं की है, जबकि उन्होंने इतने वर्षों पहले सामाजिक विडम्बनाओं पर लिखा।दलित विमर्श और स्त्री विमर्श को उस समय लिखा जब कोई लेखक नहीं लिखता था।प्रेमचंद के साहित्य में युवावों के लिए संदेश दिया है की कर्तव्यनिष्ठता,ईमानदारी और सहायता का जज़बा होना चाहिए।
शोधार्थी अंशु कुमार चौधरी ने प्रेमचंद के बाल साहित्य पर बात की। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के बाल साहित्य में हर वर्ग के बालकों के लिए लेखन किया है।शैशव,बाल एवं किशोर,बच्चों के अंदर संवेदना,उनकी समझ,नैतिक मूल्यों एवं मानवीयता, देशप्रेम की भावना उनके बाल साहित्य में दिखती है।ईदगाह कहानी में इसको देखा जा सकता है,जिसकी प्रासंगिकता आज के समय में भी है।
पुस्तक विमोचन करते हुए नाटककार सुरेन्द्र शर्मा ने कहा की निर्मला का नाट्य रूपांतर करना एक चुनौती भरा काम था जो सार्थक हुआ।कार्यक्रम के अंत में अकादमी के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा ने अपने धन्यवाद ज्ञापन सभी वक्ताओं व सुरेंद्र शर्मा का धन्यवाद करते हुए कहा कि प्रत्येक को प्रेमचंद को अवश्य पढ़ना चाहिए।हिन्दी अकादमी सदा हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए तत्पर हैं। हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक हिन्दी प्रेमी सभी कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दी अकादमी से जुड़े।