मथुरा।शीत ऋतु अपना असर दिखाने लगी है।वृंदावन में सुबह शाम की ठंड ने लोगों को गर्म कपड़े निकालने पर मजबूर कर दिया है।देवी-देवताओं को भी ठंड सता रही है। इस मान्यता के साथ देव उत्थान एकादशी से शहर के मंदिरों में भगवान के खानपान और पहनावे में बदलाव किया गया है। मंदिर के सेवायत अपने अराध्य को कढ़ी बाजरे का भोग और गर्म कोट पहना रहे हैं।ठंड को ध्यान में रखते हुए शहर के प्रमुख मंदिरों में कपाट खुलने और बंद होने के समय से लेकर आरती और भोग की व्यवस्था में भी बदलाव किया गया है।
दिनचर्या का विशेष ध्यान
हलवाई की बगीची स्थित श्रीनाथ मंदिर के पंडित मुकेश चंद मुखिया ने बताया कि शीत ऋतु की शुरुआत होने पर ठाकुरजी के खानपान से लेकर पोशाक में बदलाव किया जाता है।देवउठनी एकादशी से मकर संक्रांति तक उनकी दिनचर्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। मुकेश चंद ने बताया कि सुबह गर्म पानी में स्नान के बाद गर्म दूध और मिष्ठान का भोग लगाते हैं। रूई की बनी पोशाक और कोट पहनाते हैं,दिन में कढ़ी बाजरा, मेथी और बथुआ की सब्जी के साथ मेवे और गुड़ का भोग अर्पित करते हैं।ठंड को देखते हुए मंगला आरती और सांध्य आरती के समय में भी बदलाव किया गया है।
इसलिए किया जाता है बदलाव
विजय नगर स्थित राधा-कृष्ण मंदिर के सेवायत पंडित रजत पांडेय ने बताया कि शीत ऋतु में जिस तरह मनुष्य अपने रहन-सहन में बदलाव करता है, वैसे ही ठंड को ध्यान में रखते हुए देवी-देवताओं की दिनचर्या में बदलाव किया जाता है। सुबह का भोग गर्म रबड़ी और गाजर का हलवे के साथ गर्म दूध से लगाते हैं।
बाजरे की रोटी और मक्के का साग का भोग
पंडित रजत पांडेय ने बताया कि दोपहर का बाजरे की रोटी और मक्के का साग,गट्टे की सब्जी,अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। रात्रि भोज में मक्के की रोटी के साथ सरसाें की सब्जी और गर्म दूध दिया जाता है। सर्दियों में भगवान को शनील के कपड़ों की पोशाक के साथ शयन के समय शनील की रजाई, गद्दे और पास में अंगीठी रखते हैं। आरती के समय में आधे घंटे का बदलाव किया गया है।
भगवान ओढ़ रहे हैं रजाई
कमला नगर स्थित इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष अरविंद प्रभु ने बताया कि शयन आरती का समय 8:45 के स्थान पर 8:15 बजे कर दिया गया है। मार्गशीर्ष की षष्ठी के दिन ओढ़न षष्ठी मनाई जाती है। इस दिन से भगवान को सर्दी से बचाने के लिए मोटे कपड़े और रजाई ओढ़ना शुरू कर देते हैं। तीनों पहर को भगवान के भोग में खड़े मसाले से तैयार खिचड़ी परोसी जाती है।
लड्डू गोपाल का भोग
बता दें कि ब्रजवासी घर में बनने वाले हर भोजन का स्वाद ठाकुर जी को चखाना नहीं भूलते।फिर चाहे घर में दाल-रोटी बनी हो या पूड़ी सब्जी। भोजन की पहली थाली लड्डू गोपाल को अर्पित करने के बाद ही खाने को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है।