लखनऊ।उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में सबसे बड़ा झटका बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को लगा है।उपचुनाव के परिणाम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 9 में से 6 सीटों पर बसपा का के प्रत्याशियों का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उनकी जमानत जब्त हो गई।अब सवाल उठने लगा है क्या इन नतीजों के बाद मायावती एक बार फिर गठबंधन की ओर जा सकती हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विधानसभा सीटों पर बसपा अधिक चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के प्रत्याशियों को वोट मिला है। एक के बाद एक चुनाव में मिल रही करारी पराजय और नीचे गिरते हुए दलित जनाधार से मायावती की टेंशन बढ़ गई है। ऐसे में मायावती जल्द ही कुछ कड़े फैसले कर सकती हैं।संगठन में बड़ा फेरबदल और गठबंधन की राह पर लौटने का फैसला हो सकता है।
हाल ही में हुए उपचुनाव में 9 में से 6 सीट भाजपा,एक आरएलडी और दो सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की है।सपा को दो सीटों का नुकसान हुआ है तो वहीं भाजपा को तीन सीट का फायदा हुआ है।बसपा एक भी सीट जीतना दूर 2022 विधानसभा चुनाव के बराबर वोट भी हासिल नहीं कर पाई है। कुंदरकी सीट में 1099 वोट,मीरापुर सीट में 3248 वोट और सीसामऊ सीट में 1400 वोट बसपा को मिला है।गाजियाबाद में भी बसपा दस हजार वोट पर ही सिमट गई है।खैर और केटहरी में बसपा की जगह सपा ने ले ली है।
बसपा की इस तरह की सियासी हालत मीरापुर,कुंदरकी और सीसामऊ विधानसभा में कभी नहीं रही।कुंदरकी से बसपा दो बार जीत दर्ज कर चुकी है।मीरापुर से भी बसपा के विधायक रहे हैं।सीसामऊ विधानसभा में इतना कम वोट बसपा को कभी नहीं मिला।उपचुनाव के परिणाम से ये बात साफ हो गई है कि बसपा का अपना कोर वोटबैंक जाटव समुदाय भी बसपा की पकड़ से बाहर निकल रहा है।जाटव समुदाय नए सियासी विकल्प की तलाश में है।यही कारण है कि उपचुनाव की हार ने मायावती की टेंशन बढ़ा दी है।मायावती ने भले ही उपचुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी हो, लेकिन अपने कोऑर्डिनेटर से फीडबैक लेना शुरू कर दिया है।
सूत्रों की मानें तो मायावती ने उपचुनाव वाली सीटों की जिम्मेदारी संभाल रहे कोऑर्डिनेटर से रिपोर्ट मांगी है।यूपी से बाहर काम देख रहे सभी कोऑर्डिनेटर की बुधवार को बैठक बुलाई है।इसके अलावा यूपी में बसपा के संगठन का जिम्मा संभालने वाले सभी 56 प्रमुख कोऑर्डिनेटर और उनके साथ काम देख रहे पार्टी नेताओं भी मीटिंग संभावित है। माना जा रहा है कि कई प्रमुख कोऑर्डिनेटर को संगठन से छुट्टी हो सकती है और उनकी जगह पर युवा नेता को लगाया जा सकता है।
मायावती ने सोमवार से संगठन में बदलाव करना भी शुरू कर दिया है।झारखंड में संगठन का काम देख रहे गया शरण दिनकर को बुलाकर कानपुर की जिम्मेदारी दी गई है।धर्मवीर अशोक को पूर्वांचल से हटाकर बुलंदेखंड में लगाया गया है। ऐसे ही कई नेताओं को उनके मंडल से हटाकर अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया गया है।चंद्रशेखर आजाद के बढ़ते सियासी आधार को रोकने के लिए मायावती कई बड़े अहम कदम उठाने की दिशा में भी मंथन शुरू कर दिया है।
यूपी में बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी लगातार उलटा पड़ता जा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा में जीत दर्ज कर पाई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं पाई।उपचुनाव में बसपा का खाता खुलना तो दूर उसका अपना सियासी जनाधार भी खिसक गया है।एक के बाद एक चुनाव में मिल रही पराजय से बसपा को किसी दूसरे दल से गठबंधन नहीं करने का अपना फैसला बदलना पड़ सकता है। गठबंधन से बसपा को भले ही सत्ता हासिल न हो सके,लेकिन बसपा के सियासी अस्तित्व बचाने के लिए सांसद और विधायक मिल सकते हैं।
मौजूदा सियासत में बिना गठबंधन बसपा का सियासत में उभरना आसान नहीं है।भाजपा और सपा गठबंधन कर सियासत कर रही हैं तो बसपा को परहेज नहीं करना चाहिए। मायावती का अपना जनाधार और बसपा का सियासी अस्तित्व बचाए रखना है तो गठबंधन की सियासत पर लौटना होगा वरना बचा कुचा वोट भी खिसक जाएगा। किसी भी दल से चुनावी गठबंधन न करने का पुराना फैसला मायावती को पलटना चाहिए।
उपचुनाव के परिणामों के बाद मायावती भी इस बात को सोंचने के लिए मजबूरी हुई हैं।मायावती अब अकेले चलने की राह के बजाय गठबंधन की राह पर लौटने का फैसला कर सकती हैं।विधानसभा चुनाव 2027 में है,लेकिन उससे पहले दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं।बसपा बिहार में 2021 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ी थी और एक सीट पर जीत दर्ज की थी।बिहार उपचुनाव में बसपा एक सीट पर काफी अच्छा चुनाव लड़ी है।
बसपा को गठबंधन की सियासत करना तो है छोटे दलों की जगह बड़े दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की दिशा में मायावती को कदम उठाना होगा,क्योंकि बिहार और यूपी दोनों ही जगह दो मजबूत गठबंधन है। बसपा को इन्हीं दोनों गठबंधन में से किसी गठबंधन के साथ जाने की दिशा में सोचना चाहिए, क्योंकि वोटिंग पैटर्न बता रहा है कि मतदाता भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए वोटिंग करते हैं या फिर उसे हटाने के लिए करते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से चंद्रशेखर आजाद अपनी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के संगठन का तेजी से विस्तार करने में जुटे हैं।कभी विधान परिषद में बसपा सदस्य एवं जोनल कोआर्डिनेटर रहे सुनील चित्तौड़ अब आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं।पश्चिमी यूपी में पार्टी के विस्तार के पीछे सुनील चित्तौड़ की भूमिका अहम मानी जाती है।दलित और मुस्लिम समीकरण पर चंद्रशेखर आजाद तेजी से काम कर रहे हैं।इस दिशा में चंद्रशेखर अपनी जड़े जमाने के लिए सक्रिय हैं।इसी समीकरण से उपचुनाव में चंद्रशेखर आजाद को काफी वोट मिले हैं।
चंद्रशेखर आजाद की सियासत अभी भी मुस्लिम वोटों पर टिकी है,लेकिन दलित वोटों को भी जोड़ने की दिशा में लगे हैं। ऐसे में चंद्रशेखर की सियासत को मायावती बेअसर करना चाहती हैं तो अपने भतीजे आकाश आनंद को यूपी की सियासत में सक्रिय करना होगा।आकाश आनंद ही चंद्रशेखर की तरफ जा रहे दलित युवाओं को बसपा की तरफ मोड़ सकते हैं।खासकर पश्चिमी यूपी में दलित वोटर काफी अहम है और उसे अपने साथ जोड़े रखने के लिए मायावती को कई दिशा में काम करना होगा, जिसमें युवा लीडरशिप को आगे लाना होगा और संगठन में युवा नेताओं को जगह देनी होगी।