परिस्थिति चाहे कैसी हो पर हिम्मत कभी न हारिए....


जीवन जीना मुश्किल, जीना जिसका हल।

आई मुश्किल हो गई हल, हर मुश्किल का होता हल।।

मनोज बिसारिया | 30 Jan 2020

 

 

 हम आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं श्री योगेश गुप्ता से। भौतिक विज्ञान से स्नातकोत्तर योगेश गुप्ता जी की कंपनी का नाम है टेक्नोक्राफ़्ट इंटरप्राइज़िज़ जो सिविल व इलैक्ट्रीकल सेवाएं मुहैया कराती है। बचपन से ही योगेश गुप्ता का यही सपना था कि मैं कैसे देश के लिए कुछ कर सकता हूँ। एक आम नौकरीपेशा परिवार से ताल्लुक रखने वाले योगेश गुप्ता के एक सफल व्यवसायी बनने की कहानी आप भी जानिए मनोज बिसारिया के साथ।

प्रश्न- आप विज्ञान के मेधावी छात्र रहे। आज एक सफल व्यवसायी हैं। विज्ञान में शोध के साथ-साथ व्यापार के लिए रुझान कैसे हुआ।

उत्तर- मुझे बचपन से ही विज्ञान में बेहद रुचि थी। किसी भी परिणाम-विशेष को देखकर मन में यही ख़्याल आता कि ऐसा क्यों है। घर में भी पढ़ाई का माहौल था तो उससे भी ख़ासी मदद मिली। भौतिक विज्ञान में समय के साथ-साथ रुचि बढ़ती गई और फिर हमने इसी विषय में स्नातकोत्तर भी किया। बाद में लगा कि मार्केटिंग का ज़माना है सो हमने एमबीए भी किया। लेकिन इतना ज़रूर था कि मन में हमेशा नौकरी के बजाए स्वरोज़गार करने की ही आवाज़ आई।

प्रश्न- तो शुरुआत कैसे हुई।

उत्तर- पढ़ाई के बाद महसूस हुआ कि पढ़ाई और व्यावहारिकता में कितना फ़र्क़ है। लिहाज़ा अनुभव लेने के उद्देश्य से पहले मैंने एक कंपनी में नौकरी की। थोड़ा स्थिर हुआ तो सोचा कि चलो अब अपने लक्ष्य यानि व्यापार की ओर चला जाए। नौकरी में एक बात ज़रूर समझ आई कि इसमें आपको कई बार ऐसी बातें भी बोलनी पड़ती हैं जो कई बार आपके स्वभाव से मेल नहीं खातीं। कई बार क़ीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर भी बताना होता है। ये सब मेरे बस की बात नहीं थीं। बस मन में ख़्याल आया कि अपना ही काम करना है। शुरुआत प्लास्टिक के व्यापार से हुई। इसके बाद मैंने ट्रेडिंग का काम शुरु किया। अलीगढ़ से माल लाते थे और बाहर बेचते थे। एक बात ज़रूर बताना चाहूँगा कि मैंने कॉलेज के दिनों में एक रिक्शे को विज्ञापन ठेली का रूप दे दिया जिस पर मैंने कई कंपनियों के इश्तिहार टाँग दिए। मेरे इस प्रयास को ख़ासा सराहा गया और कुछ समाचारपत्रों ने मेरे इस प्रोजेक्ट के बारे में भी लिखा कि कैसे विज्ञापनों को आकर्षक बनाया जा सकता है।

प्रश्न- आज आप दिल्ली मेट्रो के अलावा कई बड़े नामी-गिरामी ब्रैण्ड्स के लिए भी काम कर रहे हैं। कहीं सैनिट्री का काम है तो कहीं आप फ़ायर-फ़ाइटिंग से जुड़े हुए हैं। तो क्या ये भी आपका सपना था कि एक ही समय में अलग़-अलग़ तरह के काम किए जाएं।

उत्तर- मेरी आदत शुरु से ही लोगों से घुलने-मिलने में रही है। ट्रेडिंग के काम के दौरान में कई तरह के लोगों से मिला। उसी दौरान मुझे एक कंपनी में सैनिट्री फ़िटिंग्स का काम मिला जिसे मैंने एक चुनौती की तरह लिया क्योंकि मैंने इससे पहले कभी भी इस तरह का काम पहले नहीं किया था। मैंने सफलता-पूर्वक उस प्रोजेक्ट को पूरा किया। हालांकि इसमें मुझे बहुत अधिक लाभ तो नहीं हुआ था लेकिन इससे मेरा हौसला बढ़ा और मुझे लगा कि मैं इससे भी बड़े प्रोजेक्ट कर सकता हूँ।

प्रश्न- फ़ायर-फ़ाइटिंग के क्षेत्र में कैसे आना हुआ।

उत्तर- सैनिट्री के काम में पाइप लाइनें, जल की निकासी जैसी व्यवस्थाएं भी जुड़ी हैं। तो मुझे लगा कि अगर हम अपने को थोड़ा बेहतर बना लें तो इसमें भी हाथ आज़माया जा सकता है। इसमें मेरी विज्ञान की पढ़ाई काम आई।

प्रश्न- लेकिन आग़ तो कई तरह से बुझाई जा सकती है जिसमें रसायन, पाउडर और पानी आदि शामिल हैं। आप किस तरह के ट्रीटमेंट पर काम करते हैं।

उत्तर- हम वॉटर बेस्ड ट्रीटमेंट पर काम करते हैं जो मुझे लगता है कि सबसे अधिक प्रभावशाली होता है। आज की तारीख़ में एक से अच्छे एक आग़ बुझाने के उपकरण हैं लेकिन वॉटर बेस्ड ट्रीटमेंट आज भी प्रासंगिक है। मैं इस समय अपने बहुत-से क्लाइंट्स को यही वॉटर बेस्ड ट्रीटमेंट दे रहा हूँ।

प्रश्न- योगेश जी, आपने अवसरों को अपने अनुकूल ढाला है और शायद यही एक बड़ी वजह रही कि आप निरंतर सफलता की ओर बढ़ते चले गए। मेट्रो के लिए काम करने का अवसर कैसे मिला।

उत्तर- मेट्रो में काम करना एक संयोग कहा जाएगा। मैं एक दिन अपने शोरूम में बैठा था कि तभी मेट्रो के एक अधिकारी कुछ सामान ख़रीदने हमारे यहाँ आए। बातों ही बातों में कुछ तकनीक़ से जुड़ी बातों पर चर्चा चल निकली। उन्होंने कहा कि जब आपकी तकनीक़ी विषयों पर इतनी अच्छी पकड़ है तो आप हमारे लिए काम क्यों नहीं करते। मैंने कहा जी अगर अवसर मिलेगा तो ज़रूर करूँगा। मुझे एक अवसर मिला जो मेट्रो स्टेशन पर सिविल वर्क्स से जुड़ा था। कालिंदी कुंज से जनकपुरी वेस्ट तक के कई मेट्रो स्टेशनों के लिए मैंने सिविल वर्क्स किया है। इसके अंतर्गत कई तरह के काम शामिल होते हैं। मेरे काम को मेट्रो ने काफ़ी सराहा। इसके बाद मेट्रो ने मुझे कालिंदी कुंज डिपो का भी काम दिया कुल मिलाकर मेट्रो के साथ काम करने का अनुभव काफ़ी अच्छा रहा।

प्रश्न- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे।

उत्तर- मैं दो पंक्तियों में एक बात कहना चाहूँगा कि-

जीवन जीना मुश्किल, जीना जिसका हल।

आई मुश्किल हो गई हल, हर मुश्किल का होता हल।।

इसलिए चाहे कैसी भी परिस्थिति हो पर हिम्मत कभी न हारिए....यही मैं देश की युवा पीढ़ी से कहना चाहता हूँ।

 


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