अचंभित करने वाले फैसले,फिर भी कोई अंसतोष नहीं, भाजपा कैसे खींचती है अनुशासन की इतनी बड़ी रेखा: धनंजय सिंह 


अचंभित करने वाले फैसले,फिर भी कोई अंसतोष नहीं, भाजपा कैसे खींचती है अनुशासन की इतनी बड़ी रेखा: धनंजय सिंह 

धनंजय सिंह | 20 Feb 2025

 

लखनऊ।एक के बाद एक अचंभित करने वाले फैसले,फिर भी कोई अंसतोष नहीं,कोई विरोध नहीं,जो कल तक मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे थे वही भाजपा के फैसले की सबसे ज्यादा तारीफ करते हुए दिखाई देते हैं।यह कहानी है भारतीय जनता पार्टी की और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के राजनीतिक प्रबंधन की।भाजपा ने राजस्थान में वसुंधरा राजे तो मध्य प्रदेश शिवराज सिंह चौहान जैसे कद्दावर नेताओं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा।लोग यह मानकर चल रहे थे कि मुख्यमंत्री यहीं बनेंगे,लेकिन जीत के बाद भाजपा ने पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को राजस्थान और डॉक्टर मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंप दी।अब ऐसी ही कहानी दिल्ली में भी हुई।इससे पहले भी भाजपा ने अलग-अलग राज्यों में मुख्यमंत्री का सरप्राइज पैकेज दिया है।

जब से भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का युग शुरू हुआ है तब से भाजपा ने कई ऐसे फ़ैसले लिए हैं जो सबको अचंभित कर देता है।मुख्यमंत्रियों के चयन में तो ऐसा लगातार ही नजर आ रहा है।दिल्ली में मुख्यमंत्री चुनने में पीएम मोदी और भाजपा ने एक बार फिर सभी को अचंभित कर दिया। पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया।बिजेंदर गुप्ता,परवेश वर्मा और सतीश उपाध्याय सरीखे सीनियर नेता आस लगाए बैठे थे।रेखा गुप्ता ने खुद माना कि ये सब नरेंद्र मोदी की वजह से संभव हो सका।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।दिल्ली से पहले भी भाजपा के सियासी सस्पेंस के बीच से मुख्यमंत्री सरप्राइज वाले कितने ही उदाहरण हैं,जब मुख्यमंत्रियों के चयन के फ़ैसले ने सबको अचंभित कर दिया।इसकी शुरुआत तब हुई जब पहली बार विधायक बने मनोहर लाल खट्टर को 2014 में हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया।खट्टर 9 साल से ज्यादा मुख्यमंत्री रहे और आज केंद्रीय मंत्री हैं। 2017 में योगी आदित्यनाथ को  मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला भी अचंभित करने वाला था।फिर चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को 2022 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया था।

पहली बार ही विधायक बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री,भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया।दिसंबर 2023 में राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी।तीनों राज्यों में कद्दावर नेताओं की जगह उन नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया गया,जिनकी चर्चा दूर-दूर तक नहीं थी। राजस्थान में वसुंधरा राजे की जगह भजनलाल शर्मा को, मध्य प्रदेश शिवराज सिंह चौहान की जगह डॉक्टर मोहन यादव को, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की जगह नन्द कुमार साय को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

सबसे बड़ी बात यह रही कि इन फ़ैसलों के बाद भी भाजपा में खुले तौर पर कोई असंतोष नहीं पनपा और सबको पार्टी के फ़ैसले के आगे झुकना पड़ा।इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और आलाकमान का मज़बूत होना माना जाना है। अचंभित करने वाले फैसले के बाद भी अंसतोष न होना भाजपा के अंदर मौजूद अनुशासन की कहानी भी बताता था। भाजपा का चाहे छोटा-बड़ा सभी नेता यह मानता है कि पार्टी है तभी मैं हूं।बीते दिनों राजस्थान से इसका उदाहरण भी सामने आया था।जब राजेंद्र राठौड़ को लेकर सियासत मची तो उन्होंने खुलकर कहा कि मैं पार्टी से हूं,पार्टी है तभी मैं हूं।

वहीं कांग्रेस में इसके उलट जहां भी सरकार बनती गई वहां बगावत ही देखने को मिली।राजस्थान में सचिन पायलट ने, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने,छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव ने अपनी ही सरकार की नाक में दम कर दिया।अभी कर्नाटक में डी के शिवकुमार के तेवर भी कभी नरम और कभी गरम होते रहते हैं।


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