दिल्ली में 6 साल बाद लौटा दुर्लभ ब्लैक ईगल,तिलपथ वैली में बनाया अपना ठिकाना


दिल्ली में 6 साल बाद लौटा दुर्लभ ब्लैक ईगल,तिलपथ वैली में बनाया अपना ठिकाना

मनोज बिसारिया | 07 Apr 2025

 

दक्षिणी दिल्ली।राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की हवा एक तरफ जहां लगातार प्रदूषण की वजह से खराब हो रही है।वहीं बायो डायवर्सिटी पार्कों के जरिए जैव विविधता को संजोने का प्रयास भी लगातार हो रहा है।इसका सुखद संकेत भी अब नजर आने लगा है।घास और झाड़ियों से लेकर पेड़-पौधों का अद्भुत समागम तैयार हुआ तो जीवों का समृद्ध संसार भी यहां बसने लगा।ऐसे ही पार्क में शामिल है तिलपथ वैली जैव विविधता पार्क,जहां अब न केवल दुर्लभ ब्लैक ईगल (काला चील) उड़ान भरते नजर आ रहे हैं, बल्कि घात लगाकर शिकार भी कर रहे हैं। 

राजधानी दिल्ली के तिलपथ वैली जैव विविधता पार्क में दुर्लभ ब्लैक ईगल की वापसी हुई है।छह साल बाद राजधानी में इसे देखा गया है।ब्लैक ईगल हिमालय की तराई में नेपाल से सटे हिमाचल प्रदेश,जम्मू-कश्मीर के साथ श्रीलंका में पूर्वी और पश्चिमी घाट के जंगलों में पाया जाता है। 

तिलपथ वैली जैव विविधता पार्क को 12 एकड़ में घास का मैदान तैयार किया गया है। यहां घास की प्रमुख प्रजातियां सेंचरस,हेटेरोपोगोन,क्राइसोपोगोन,एरिस्टिडा,डेस्मोस्टैचिया आदि हैं,जो ढलानों पर मिट्टी की कटाव को भी रोकती हैं और शाकाहारी जानवरों के लिए भोजन का आधार भी बनाते हैं। घास के मैदानों में लाल अवदावत,भारतीय सिल्वरबिल,घरेलू गौरैया,ग्रे फ्रैंकोलिन,पाइड बुशचैट,क्रेस्टेड लार्क,पैडीफील्ड पिपिट जैसे पक्षी देखे जा सकते हैं। इनसे आकर्षित होकर बड़े शिकारी पक्षी सामान्य चील,उल्लू,बाज भी यहां आने लगे हैं।

तिलपथ वैली में 15 वनस्पति समुदायों से संबंधित कुल 105 वृक्ष प्रजातियां लगाई गईं।प्रत्येक वनस्पति समुदाय का चयन भूभाग की स्थलाकृति के आधार पर किया गया।ये वो पौधे हैं, जो दिल्ली की पथरीली जमीन पर 100-200 साल पहले बहुतायत में थे।निचले और समतल क्षेत्रों को घास के मैदानों और चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष प्रजातियों में विकसित किया गया। घाटियों की ढलानों पर उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन पारिस्थितिकी तंत्र में विकसित किया गया। इनमें महुआ,तेंदु, हल्दु,ढाक,चिलबिल,शीशम,बेल आदि शामिल हैं। अब जब प्रकृति के हिसाब से पौधे तैयार हो गए हैं तो इनसे जुड़े जीव-जंतु खुद ही आ गए।

तिलपथ जैव विविधता पार्क दक्षिणी रिज पर 69.56 हेक्टेयर में फैला है।यह असोला-भट्टी वन्यजीव अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। दो साल पहले तक यहां पक्षियों की 110 प्रजातियां हुआ करती थीं,जो अब बढ़कर 126 हो चुकी हैं,पार्क में तितलियों की 65 से अधिक प्रजातियां भी हैं,दुर्लभ सिरकीर मलकोहा का भी यह स्थायी निवास है,यहां नील गाय,जंगली बिल्ली,लकड़बग्घा,गीदड़,शाही,दुर्लभ सिवेट,नेवले अच्छी संख्या में हैं।सांपों की प्रजातियों की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा राक पाइथन देखने को मिलेंगे। इसके अलावा इंडियन कोबरा और सा-स्केल्ड वाइपर भी यहां हैं।


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