नई दिल्ली।समाचार मिला कि वरिष्ठ पत्रकार,संपादक और साहित्यकार डॉक्टर सूर्यकांत बाली अब हमारे बीच नहीं रहे। 81 वर्ष की अवस्था में लंबी बीमारी के बाद रविवार रात उनका अस्पताल में निधन हो गया। डॉ. बाली अपने लेखन और पत्रकारीय कौशल से भारतीय समाज में विशेष योगदान दिया। नवभारत टाइम्स में हर रविवार को डाॅ. बाली का लेखन-श्रृंखला –भारत के मील पत्थर-प्रकाशित होता था,जिसका इंतज़ार हम जैसे पाठकों को पूरा सप्ताह रहता कि देखें अगली बार किस विषय पर पढ़ने को मिलेगा।
लगभग 20 वर्ष पहले मेरी मुलाक़ात डॉ. बाली से नोएडा के एक टीवी चैनल में हुई थी। पहली ही मुलाक़ात में डॉ. बाली ने मुझे वह अमूल्य ग्रंथ- भारत गाथा (भारत के मील पत्थर)- भेंट में दिया,जिसपर उनके तिथि सहित हस्ताक्षर भी थे। वह ग्रंथ आज भी मेरे निजी पुस्तकालय की शोभा है।ये ग्रंथ नवभारत टाइम्स के रविवारीय अंक में प्रकाशित समस्त लेखों का संकलन है।मैंने पुस्तक हाथ में लेते ही उसमें संकलित लेखों पर चर्चा आरंभ कर दी।एक शिक्षक की तरह डाॅ.बाली मुझे सुनते रहे।बाद में उनके चेहरे पर आश्वस्ति के भाव नज़र आए कि मैंने वास्तव में उनके सभी लेख पढ़े थे।
भारत के मील पत्थर में देश का पौराणिक इतिहास है, हमारी संस्कृति का सटीक विवेचन है।इतिहास में साधारण रुचि रखने वाला पाठक भी इसे आरंभ से अंत तक पढ़ता चला जाएगा, ऐसा मेरा मानना है।उसके बाद जब भी समय मिलता डॉ. बाली हमारे चैनल में आते और मुझसे ज़रूर मिलते।एक दिन चाय पर उनकी पुस्तक पर चर्चा के दौरान डाॅ. बाली ने बताया कि ये पुस्तक मैंने बोल-बोल कर यानी श्रुतलेख के माध्यम से लिखवाई है।मुझे अख़बार की ओर से आशुलेखक मिला हुआ था,मुझे जब भी समय मिलता,मैं उसे बुलवाकर बोलता चलता और फिर वह रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित हो जाता।
ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे डॉ. बाली,जिन्होंने भारत के इतिहास का अमूल्य ग्रंथ केवल बोल-बोलकर रच दिया।इसके अलावा डॉ. बाली की भारत की राजनीति महाप्रश्न,दीर्घतमा,तुम कब आओगे श्यावा जैसी कई पुस्तकें भी उल्लेखनीय हैं।
एक दिन हमने अपने चैनल में सेमिनार का आयोजन किया,जिसमें दूरदर्शन के वरिष्ठ उद्घोषक श्री अशोक श्रीवास्तव को भी आमंत्रित किया गया था।डॉ. बाली को कहीं जाना था,किंतु वे रुके रहे। मुझसे कहा कि मैं अशोक को सुनना चाहता हूं,देखता हूं क्या बोलते हैं।वैसे अशोक श्रीवास्तव अच्छा ही बोलते हैं और वर्तमान में दूरदर्शन पर उनका कार्यक्रम दो-टूक भी काफ़ी सराहा जाता है।उस दिन अशोक को सुनने के बाद ही डॉ. बाली गए।नयी पीढ़ी और पुराने अनुभव को साथ लेकर चलने का भाव मैंने सदैव डॉ. बाली में देखा।इसके बाद कई वर्षों से मेरा संपर्क डॉ. बाली से नहीं हो पाया।अभी पिछले दिनों मैं सोच रहा था कि अपनी साक्षात्कार श्रृंखला पर आधारित संवाद 360 चैनल के लिए उनसे बात करूं,लेकिन मैं चूक गया।काश....भाव के साथ मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ईश्वर उन्हें सद्गति दे, अलविदा, प्रणाम।