वैवाहिक विवादों में वकीलों की क्या भूमिका होनी चाहिए, जानें दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या दी सलाह


वैवाहिक विवादों में वकीलों की क्या भूमिका होनी चाहिए, जानें दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या दी सलाह

संध्या त्रिपाठी | 12 Apr 2025

 

नई दिल्ली।ऐसा देखा गया है कि शादी से जुड़े विवादों में अक्सर वकील अपने मुवक्किलों को उकसाने का प्रयास करते हैं।इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि वकीलों को अपने मुवक्किलों को वैवाहिक विवाद सुलझाने की सलाह देनी चाहिए न कि उन्हें एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप करने और इसे हवा देने का मशविरा देना चाहिए। 

कानूनी सीमाओं के दायरे में रहे आचरण

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि वैवाहिक विवादों में वादियों प्रतिवादियों को भावनात्मक आघात का सामना करना पड़ता है,उनके निजी जीवन में ठहराव सा आ जाता है।बेंच ने कहा कि वह वादियों प्रतिवादियों की हताशा और निराशा से अवगत है।शांति और सौहार्द अत्यंत आवश्यक है और ऐसे मामलों में वादी पक्षकारों का आचरण कानून में निर्धारित सीमाओं को पार नहीं कर सकता। 

अदालत और समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में वकीलों की न केवल अपने मुवक्किल के प्रति बल्कि अदालत और समाज के प्रति भी बड़ी जिम्मेदारी होती है।शांति और सौहार्द अत्यंत आवश्यक है।वकीलों को मुवक्किलों को एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाने और उन्हें बढ़ावा देने के बजाय विवादों के समाधान की सलाह देनी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपों को बेहद व्यक्तिगत रूप से लिया जा सकता है, जिसके कारण मुवक्किल दूसरे पक्ष के वकीलों के साथ दुर्व्यवहार कर सकते हैं, हालांकि इसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।अंत में ऐसे मामलों में पक्षकारों का आचरण कानून में निर्धारित सीमाओं से परे नहीं जा सकता।

पति पर लगाया एक लाख रुपये का जुर्माना

दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने एक पति पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए यह टिप्पणी की। यह राशि उसे अलग रह रही अपनी पत्नी को देनी होगी। यह जुर्माना उसके दुर्व्यवहार के लिए कुटुंब अदालत में लगाया गया था। इस दुर्व्यवहार में पत्नी के वकील के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल भी शामिल था। पति के खिलाफ आपराधिक अवमानना की ​​कार्यवाही शुरू करने की महिला की याचिका पर विचार करते हुए और उसे (पति को) छह महीने की जेल की सजा सुनाते हुए बेंच ने कहा कि हालांकि हाईकोर्ट और कुटुंब अदालतों में कार्यवाही के दौरान कई घटनाएं हुई हैं, लेकिन उसे (पति को) सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ परिस्थितियों ने उसे ऐसा व्यवहार करने के लिए उकसाया। 

अदालत में गाली-गलौज मंजूर नहीं

हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी के वकील के खिलाफ कोई आरोप थे तो पति को उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी। अदालत में गाली-गलौज करना स्वीकार्य नहीं होगा। पति ने जुलाई 2024 में कथित तौर पर कुटुंब अदालत में वकील के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया था,जिसके बाद हंगामा मच गया था। यह रिकॉर्ड में दर्ज है कि उसने न केवल पत्नी के वकील के खिलाफ, बल्कि संबंधित न्यायाधीश के खिलाफ भी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके शर्मसार किया था। हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद दोनों पक्षों के वकीलों के बीच खतरनाक झगड़े में बदल गया। 

इस मामले की पृष्ठभूमि, पति द्वारा व्यक्त किए गए पश्चाताप और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उसके पिता बीमार हैं, हाईकोर्ट ने पति को फटकार लगाई और उसे पत्नी के वकील से मौखिक माफ़ी मांगने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया,नसीहत और माफ़ी के अलावा, प्रतिवादी (पति) याचिकाकर्ता (पत्नी) को एक लाख रुपये का खर्च भी अदा करेगा। हाईकोर्ट ने उसे अपने नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण और स्कूल की फीस का भुगतान जारी रखने का भी आदेश दिया।


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