लंदन से काशी आई बांग्लादेशी महिला ने अपनाया सनातन धर्म,कहा- सपने में आती थी मरी हुई बेटी


लंदन से काशी आई बांग्लादेशी महिला ने अपनाया सनातन धर्म,कहा- सपने में आती थी मरी हुई बेटी

धनंजय सिंह | 12 May 2025

 

वाराणसी।सनातन की जड़ें कितनी गहरी हैं यह समझना उस समय और भी आसान हो गया,जब लंदन से आध्यात्मिक नगरी काशी पहुंची बांग्लादेशी मुस्लिम महिला अंबिया बानो ने सनातन धर्म को अपनाया।अंबिया ने अपने पूर्वजों की गलती को सुधारते हुए दोबारा सनातन धर्म अपनाया।सनातन धर्म अपनाने को अंबिया घर वापसी बता रही हैं और वह काफी खुश हैं।

अंबिया बानो से अंबिया माला बनी महिला अपने धार्मिक अनुष्ठान में 27 साल पहले गर्भ में मारी गई अपनी बेटी के मोक्ष की कामना के लिए आध्यात्मिक नगरी काशी पहुंची और दशाश्वमेध घाट पर पिंडदान किया। पिंडदान का कर्मकांड काशी के प्रख्यात पुरोहितों के सानिध्य में पांच वैदिक ब्राह्मणों ने संपन्न कराया।

पिंडदान का कर्मकांड शुरू होने से पहले सामाजिक संस्था आगमन संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने गंगा स्नान कराकर सनातन धर्म को स्वीकारने का आह्वान किया। पंचगव्य ग्रहण करा महिला की आत्मशुद्धि कराई। सनातन धर्म अपनाने के साथ ही महिला अंबिया बानो से अंबिया माला बन गई।

वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर शांति पाठ के साथ श्राद्ध कर्म की शुरुआत आचार्य पंडित दिनेश शंकर दुबे ने कराया। सहयोग में पंडित सीताराम पाठक, कृष्णकांत पुरोहित, रामकृष्ण पाण्डेय और भंडारी पांडेय रहे। 

बता दें कि लंदन में पली-बढ़ी अंबिया माला (49) बांग्लादेश के सुनामगंज इलाके की मूल निवासी थी। अंबिया ने लंदन में ही ईसाई धर्म को मानने वाले नेविल बॉरन जूनियर से शादी कर ली थी। अंबिया से शादी के बाद उनके पति नेविल ने इस्लाम धर्म अपना लिया था,शादी के लगभग एक दसक बाद उनका तलाक भी मुस्लिम पद्धति के अनुरूप ही हुआ।

अंबिया बताती हैं कि उनके अभिभावकों की वजह से उन्हें ऐसा कुछ करना पड़ा,जिसका उनको पश्चाताप होता था। 27 साल पहले गर्भ में ही बेटी की मौत हो गई थी,बेटी सपने में आकर मोक्ष दिलाने को कहती थी,मां काली ने मुझे रास्ता दिखाया और मैं काशी आई,काशी में मैंने सनातन स्वीकार किया और अब बहुत शांत महसूस कर रही हूं,ऐसा लग रहा है कि कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया है और मैं अपने घर आ गई हूं।

अंबिया बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने बेटी की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया।इस दौरान उन्हें काशी और पिंडदान के बारे में पता चला,इसके बाद उन्होंने काशी के दशाश्वमेध घाट आकर बेटी को पिंडदान किया, इस अनुष्ठान के बाद अंबिका न केवल खुश है बल्कि वह सनातन धर्म में आने का यह घर वापसी बताती हैं।


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