मित्रों ! अभी तक हम सब तीन काल जानते हैं लेकिन अब एक और काल जुड़ गया है जिसका नाम है कोरोना काल। तीनों कालों का उपयोग हम अपनी सुविधा के अनुसार करते रहें हैं लेकिन अँग्रेजी के अनुवाद में हम एक साथ सभी काल भूत, वर्तमान और भविष्य का उपयोग कर चुके हैं। यह कोरोना काल उन सभी कालों पर भारी है यानी भूतो न भविष्यति लेकिन इस काल का हमें शुक्रिया करना होगा। कई कालों पर यह काल भारी पड़ा है।
इस काल ने हमें जितनी सुविधा दी सम्भवतः किसी युग और काल में यह नहीँ मिली होगी और न मिलेगी। इस काल में लोगों के भीतर सुसुप्त ज्वालामुखी जैसी शांत पड़ी योग्यताएं अकस्मात प्रस्फुटित हो चली हैं। देश की 80 फीसदी आबादी तो कवि के रुप में अवतरित हुई है। इस योग्यताओं को सोशलमीडिया ने अच्छा प्लेटफार्म देकर सम्मानित किया है।
हमें कोरोना काल में टिक- टाक, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम का आभारी होना चाहिए जिन्होंने कोरोना काल के स्वनाम धन्य कवियों को हिमालय से भी अधिक ऊंचाइयों और गहराइयों तक पहुँचाया है क्योंकि ये सुविधाएँ उपलब्ध न होती तो इन काल के कवियों का अभ्युदय संभव न था। हमारे संपादकों की चलती तो नब्बे फीसदी कवि उसमें भी अधिकांश पुरुष मित्रा रद्दी की टोकरी में होते या फिर ईमानदार डाक विभाग सखेद का लिफाफा पहुँचा चुका होता। हमें कोरोना काल के साथ एंड्रायड काल का भी शुक्रगुजार होना चाहिए। क्योंकि यह काल न होता तो पवित्रा कोरोना काल में बालीवुड के अमर गीत की तर्ज पर यह गीत सुनने को कहाँ मिलते। डायनासोर युग की तरह विलुप्त रहते। भला इनकी सुध कौन लेता लेकिन इस माध्यम से कई हिंदी फिल्मों की वह थीम भी जिंदा हो गई जो प्रायः विलुप्त हो चुकी थी। ऐसे में इन कवियों के लिए कोरोना पद्मश्री सम्मान की सुविधा शुरू की जानी चाहिए।
हे ! कोरोना काल। आपने कइयों का भला किया है। कितने बच्चे बेचारे इस धरतीलोक पर आगमन के बाद शायद ही जानते होंगे कि पापा नाम की वस्तु भी कैसी होती है। यह जानने के लिए उनके पास सिर्फ संडे का दिन होता था लेकिन कोरोना काल ने उन बेचारों की यह शिकायत भी दूर कर दी। लो जी संडे हो या मंडे, रोज खाओ अंडे। अब तो तीसरा भी लाकडाउन हो गया। कोरोना काल में सप्ताह में होंने वाला संडे अब हर दिन में तब्दील हो गया है। अब पतिपरायण पत्नियों को भी इस काल ने बड़ी राहत दी है। घर की नौकरानियों पर शामत आ गई है। उनकी छुट्टी कर दी गई है। बेचारे पतिदेवों ने झाडू- पोंछे से लेकर रसोई तक की जिम्मेदारी सम्भाल ली है। मैडम की जमात बस फरमाइश पर फरमाइश कर रहीं है। पतिदेव ऐसे लुट गए हैं जैसे कोई ब्याय फ्रेंड अपनी गर्ल फ्रेंड के लिए बिछता है। हर रोज अपनी काबिलियत सोशल मीडिया पर चस्पा कर रहें हैं लेकिन बाइयों को चिंता है कि कोरोना काल के कारण उनकी नौकरी न चली जाय। अरे भाई जब गृहकार्य हेतु खैरात के दक्ष सुविधाएँ उपलब्ध हैं तो कोई बाइयों को क्यों रखेगा।
मैडम लक्ष्मी जी भी खुश हैं क्योंकि आफिस से अवकाश माँगने की अब जरुरत नहीँ है। अब पतिदेव आफिस की किसी गर्लफ्रेंड से मिलने के बहाने भी नहीँ ढूँढ पा रहे हैं। पतिपरायण मैडम जी को बड़ा सुकून है कि आजकल उनका कोई बहाना नहीँ सुनने को मिल रहा है वरना आफिस से घर देर लौटने पर सौ बहाने सुनने को मिलते थे कि अरे यार सारी ! आफिस में आज बड़ा वर्क लोड था, बॉस रात दस बजे खुद निकले हैं। आज तो कार ही गड़बड़ हो गई। उफ ! ट्रेन छूट गई। कम से कम सारी बालाओं और बलाओं से मुक्ति तो है क्योंकि अब तो वर्क फ्राम होम है।
अब तो मैडम जी कोरोना को कुछ अधिक ही धन्यवाद करने लगी हैं। सुबह- शाम उसी को धूप- दीप देती रहती हैं। कम से कम लाकडाउन खत्म होंने के बाद भी पतिदेव आफिस में छुआ- छूत की बला का पालन तो करेंगे और बालाओं की बला से तो बचें रहेंगे। इस तरह की आफत से परेशान कई पतिपारायणा चाहती हैं कि कोरोना देव की कृपा बनी रहे और आफिस या पड़ोस में उन पर किसी बालाओं की बला का जोर न चले। कम से कम किचन पुराण और कपड़े धोने के जन्मसिद्ध अभिशाप से तो मुक्ति मिली है। (अदिति)