लखनऊ।नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद सूबे की सियासत में उभरते हुए दलित नेता हैं।चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता बहुजन समाज पार्टी की मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के लिए बड़ी चुनौती है।चंद्रशेखर की हालिया अपील,जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय से एकजुट होने और बार-बार ठगे जाने से बचने का आह्वान किया,यह संकेत देती है कि वह अब सपा के मजबूत मुस्लिम वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं।चंद्रशेखर की मुस्लिम अपील सपा के वोट बैंक को प्रभावित कर रही है,जिससे सपा के लिए खतरे की घंटी बज रही है।
सपा के मुस्लिम वोट पर चंद्रशेखर की निगाहें
यूपी में दलित वोटर लगभग 21-23 फीसदी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।लंबे समय तक बहुजन और मायावती के लिए दलित वोटर एक मजबूत आधार रहे हैं।मायावती ने 2007 में अपनी सर्वजन रणनीति के जरिए दलितों,पिछड़ों, मुस्लिमों और सवर्ण जातियों का गठजोड़ बनाकर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी।मगर हाल के वर्षों में बसपा की घटती लोकप्रियता और 2024 के लोकसभा चुनावों में जीरो होना इस बात का संकेत है कि मायावती का जाटव और गैर-जाटव दलित वोट कमजोर पड़ रहा है।इसका लाभ चंद्रशेखर ने उठाया। 2024 में नगीना लोकसभा से चंद्रशेखर लगभग 1.5 लाख वोट से जीत हासिल की और बसपा चौथे नंबर पर रही।
चंद्रशेखर की पश्चिमी यूपी में बढ़ रही पैठ
चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर और नगीना जैसे क्षेत्रों में,जहां जाटव और मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं,अपनी पैठ बनाई है, चंद्रशेखर की भारी वोटों से जीत और बसपा की हार ने यह स्पष्ट कर दिया कि दलित युवाओं,विशेष रूप से जाटवों के बीच चंद्रशेखर का आकर्षण बढ़ रहा है।चंद्रशेखर की आक्रामक और जमीनी स्तर की राजनीति मायावती की पारंपरिक और कम सक्रिय शैली के विपरीत है,जो अब मुख्य रूप से प्रेस विज्ञप्तियों और सोशल मीडिया तक सीमित दिखती है।
चंद्रशेखर की सपा के वोट बैंक पर नजर
चंद्रशेखर आजाद की हालिया अपील,जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय से एकजुट होने और बार-बार ठगे जाने से बचने की बात कही,ये सपा के लिए एक बड़ा खतरा बन रही है।सपा का पारंपरिक वोट आधार यादव (लगभग 8-10 फीसदी मतदाता), मुस्लिम (लगभग 19फीसदी), और कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों पर निर्भर है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने पिछड़ा,दलित,अल्पसंख्यक (पीडीए) रणनीति के जरिए 37 सीटें जीतीं, जिसमें दलित और मुस्लिम वोटों का महत्वपूर्ण योगदान था।
सपा के लिए क्यों है खतरे की घंटी
चंद्रशेखर आजाद की मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने की अपील और उनकी बढ़ती लोकप्रियता सपा के लिए खतरे की घंटी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि मुस्लिम युवाओं में चंद्रशेखर का क्रेज बढ़ रहा है और मुस्लिम वोटर धीरे-धीरे सपा से हटकर उनकी ओर खिसक रहे हैं,हालांकि इन दावों को पूरी तरह सत्यापित नहीं किया जा सकता,लेकिन यह स्पष्ट है कि चंद्रशेखर की रणनीति सपा के मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है, चंद्रशेखर की यह रणनीति नगीना में पहले ही सफल हो चुकी है,जहां उन्होंने दलित और मुस्लिम वोटों का प्रभावी गठजोड़ बनाया।
चंद्रशेखर का अखिलेश पर आरोप
चंद्रशेखर आजाद की यह रणनीति सपा के लिए इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि अखिलेश यादव ने हाल के वर्षों में दलित वोटरों को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे बाबा साहेब वाहिनी की स्थापना और सामान्य सीटों पर दलित उम्मीदवारों को उतारना।हालांकि चंद्रशेखर की आक्रामक और युवा-केंद्रित अपील,खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा के इस प्रयास को कमजोर कर सकती है, इसके अलावा सपा और चंद्रशेखर के बीच गठबंधन की बातचीत 2022 और 2024 में विफल रही,जिसके कारण चंद्रशेखर ने अखिलेश पर दलितों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।
चंद्रशेखर का बढ़ता कद मायावती के लिए झटका
मायावती के लिए चंद्रशेखर आजाद का उभार एक बड़ा झटका है।बसपा का वोट शेयर 2007 के 30.43 फीसदी से घटकर 2024 में 9.39 फीसदी तक पहुंच गया है।बसपा 2024 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी। मायावती की रणनीति,जिसमें उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा,दलित-मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने में विफल रही।इसके विपरीत चंद्रशेखर ने नगीना में इस गठजोड़ को सफलतापूर्वक लागू किया,जिससे उनकी विश्वसनीयता बढ़ी।
चंद्रशेखर से गठबंधन न होने पर सपा को हो सकता है नुकसान
सपा और चंद्रशेखर के बीच गठबंधन की असफल कोशिशें भी अखिलेश के लिए नुकसान पहुंचा सकती हैं, 2022 में चंद्रशेखर ने दावा किया कि अखिलेश ने उन्हें गठबंधन में शामिल करने से इनकार कर दिया,जिसके कारण वह सपा के खिलाफ तीखी आलोचना करने लगे।यह तनाव 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा के लिए और चुनौती पेश कर सकता है, क्योंकि चंद्रशेखर की पार्टी ने सभी 403 सीटों पर लड़ने की घोषणा की है।
भाजपा के लिए अवसर और चुनौतियां
चंद्रशेखर आजाद का उभार और दलित-मुस्लिम वोटों का विभाजन भाजपा के लिए एक अवसर हो सकता है। भाजपा ने पहले ही गैर-जाटव दलित वोटों (जैसे खटिक और वाल्मीकि) को अपने पक्ष में किया है और 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ जाटव वोट भी हासिल किए।चंद्रशेखर और मायावती के बीच दलित वोटों का बंटवारा और सपा के मुस्लिम वोटों में सेंधमारी भाजपा को त्रिकोणीय मुकाबले में फायदा पहुंचा सकती है।हालांकि भाजपा को भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि चंद्रशेखर की दलित-मुस्लिम रणनीति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनके लिए चुनौती बन सकती है, जहां दलित और मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं।