नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद जेल में बंद आफताब को ज़मानत का आदेश मिलने के बावजूद रिहा न किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की जमकर खिंचाई की।सुप्रीम कोर्ट ने कहा भगवान जाने कितने लोग तकनीकी कारणों से आपकी जेलों में सड़ रहे हैं।कोर्ट ने जमानत आदेश में खामी बताकर आफताब को रिहा नहीं करने के मामले की जांच का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और एन. कोटिस्वर सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने गाजियाबाद के मौजूदा जिला जज द्वारा मामले की न्यायिक जांच का आदेश दिया और कहा कि यह जांच इस बात पर केंद्रित होगी कि याचिकाकर्ता आफताब की रिहाई में देरी क्यों हुई और क्या कुछ भयावह चल रहा था। इसके साथ ही कोर्ट ने जमानत मिलने के बाद भी शख्स को जेल में रखने पर यूपी सरकार से शख्स को 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी आदेश दिया।
इस मामले की सुनवाई शुरू होने पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आरोपी को 24 जून को रिहा कर दिया गया।साथ ही कहा कि रिहाई में देरी क्यों हुई,इसकी जांच डीआईजी मेरठ को सौंपी गई है ताकि पता चल सके कि रिहा किए जाने में इतनी देरी क्यों हुई।मामले को ऐसे ही नहीं जाने देंगे इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि आरोपी को जमानत देने का स्पष्ट आदेश था, बावजूद उसे रिहा नहीं किया गया और आरोपी को संशोधन की मांग को लेकर दोबारा से अदालत का रूख करना पड़ा। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि भगवान ही जाने आपके (यूपी) जेलों में तकनीकी कारणों से ऐसे कितने लोग सड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम इस मामले को ऐसे नहीं जाने देंगे, राज्य में बहुत सारी जेलें हैं, इसकी जांच जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि हमारे आदेश के बाद भी आप लोगों को सलाखों के पीछे रखते हैं तो हम क्या संदेश दे रहे हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आग्रह को ठुकरा दिया,जिसमें कहा गया है कि मामले की जांच डीआईजी मेरठ कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले की न्यायिक जांच जरूरी है।अधिकारी को ही जुर्माना देना होगा। कोर्ट ने यह साफ कहा है कि यदि इस मामले में कोई अधिकारी दोषी पाया जाता है तो यह अदालत उसकी व्यक्तिगत दायित्व मानकर जुर्माना लगाएंगे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि देरी से रिहाई में अधिकारी की भूमिका मिली तो जुर्माने का भुगतान उक्त अधिकारी को ही करना होगा। साथ ही कहा कि मुआवजे की रकम हम 10 लाख रुपये भी कर सकते हैं।
आदेश में किसी स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी।यूपी के जेल महानिदेशक और गाजियाबाद के जेल अधीक्षक सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद जेल प्रशासन ने मंगलवार को ही आरोपी आफताब को जेल से रिहा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को रिहा किए जाने से साफ पता चलता है कि आदेश स्पष्ट था और इसमें किसी भी तरह की स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी।
बता दें कि आफताब के खिलाफ अवैध धर्मांतरण के आरोप में 2024 में मुकदमा दर्ज किया गया था।इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आफताब को 29 अप्रैल को जमानत दे दी थी। इसके बाद गाजियाबाद की जिला अदालत ने 27 मई को जेल अधीक्षक को एक रिहाई आदेश जारी करते हुए मुचलका जमा करने पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया था,लेकिन जेल प्रशासन ने आफताब को रिहा करने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से 27 जून तक आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट मांगी है।सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को करेगा।