नई दिल्ली।दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य से जुड़े प्रोजेक्ट्स में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप में एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) ने दिल्ली सरकार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की सिफारिश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जांच के आदेश दे दिये हैं।बता दें कि एसीबी कथित अस्पताल घोटाले को लेकर पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन के खिलाफ इस मामले की जांच करेगी।
बता दें कि भाजपा नेता विजेंद्र गुप्ता ने 22 अगस्त 2024 को इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी।इस शिकायत में दिल्ली सरकार (GNCTD) के तहत विभिन्न स्वास्थ्य अवसंरचना परियोजनाओं में गंभीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की आशंका पर प्रकाश डाला गया था। शिकायत में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन का नाम लिया गया था। उन पर परियोजना बजट में व्यवस्थित हेरफेर,सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और निजी ठेकेदारों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया गया है।
इस मामले की जांच कर रही एसीबी ने पाया कि शहर भर में विभिन्न अस्पतालों,पॉलीक्लिनिकों और आईसीयू के निर्माण में भारी अनियमितताएं,बिना कारण देरी और धन का खूब दुरुपयोग किया गया है। कई सौ करोड़ रुपये की बड़ी विसंगतियां और लागत वृद्धि देखी गई। निर्धारित समय सीमा के भीतर एक भी परियोजना पूरी नहीं हो पाई।
इस मामले की जांच में कहा गया है कि 24 अस्पतालों की परियोजना की लागत में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। 6800 बेड क्षमता वाले 7 आईसीयू बनाने के लिए 1125 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी। हालांकि प्राथमिक जांच में यह पता चला है कि तीन साल बीत जाने के बाद भी केवल 50 फीसदी काम ही पूरा हुआ है और इसके लिए करीब 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।इसे बनाने के लिए 6 महीने की समय सीमा निर्धारित की गई थी।इसके अलावा 5590 करोड़ की लागत से साल 2018-19 में बनने वाले 24 अस्पताल प्रोजेक्ट (11 ग्रीनफील्ड और 13 ब्राउनफील्ड) देरी और खर्च में वृद्धि के शिकार हुए हैं।
जांच से पता चला कि ज्वालापुरी (एम/एस परनिका कमर्शियल एंड एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा) और मादीपुर (एम/एस रामासिविल इंडिया कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा) के सरकारी अस्पतालों में अनाधिकृत अतिरिक्त निर्माण किया गया था। यह निर्माण सक्षम अधिकारियों की मंजूरी के बिना किया गया। खास बात यह है कि मादीपुर अस्पताल परियोजना नवंबर 2022 तक पूरी होनी थी,लेकिन यह अभी भी अधूरी और बंद पड़ी है। इसके अलावा,यह भी सामने आया कि एम/एस सैम इंडिया बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए 7 आईसीयू अस्पतालों की लागत 100% से अधिक बढ़ गई है, और फरवरी 2022 की समय सीमा के काफी बाद भी इनका निर्माण अधूरा है।
जांच में यह भी पाया गया कि एलएनजेपी अस्पताल में न्यू ब्लॉक का काम,जिसे मेसर्स स्वदेशी सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया था, चार साल में उसकी लागत ₹488 करोड़ से बढ़कर ₹1,135 करोड़ हो गई। जनवरी 2023 की समय सीमा के बाद भी यह इमारत अभी तक अधूरी है। इसके अतिरिक्त,पॉलीक्लिनिक परियोजना में भी धन के दुरुपयोग का संकेत मिला। 94 नियोजित क्लीनिकों में से केवल 52 ही बनाए गए, जबकि लागत ₹168 करोड़ से बढ़कर ₹220 करोड़ हो गई। इनमें से कई पॉलीक्लिनिक अभी भी काम नहीं कर रहे हैं।
2016-17 में सार्वजनिक घोषणा के बावजूद, हेल्थ इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (HIMS) जो स्वास्थ्य विभाग में वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है,अभी भी लागू नहीं हुआ है। एनआईसी (e-Hospital) से एक मुफ्त,किफायती समाधान को बिना किसी उचित कारण के जानबूझकर अस्वीकार कर दिया गया था।
जांच-पड़ताल के दौरान,नियमों,टेंडर की शर्तों और वित्तीय प्रोटोकॉल का गंभीर उल्लंघन पाया गया। इसमें जानबूझकर की गई देरी,परियोजनाओं की बढ़ी हुई लागत,उचित विकल्पों को खारिज करना और निष्क्रिय परिसंपत्तियों का निर्माण जैसी बातें सामने आईं। इन सब से मिलकर सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। इन निष्कर्षों के आधार पर,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के तहत पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों के खिलाफ पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। सक्षम अधिकारी द्वारा इसकी विधिवत मंजूरी दे दी गई।