सरकार ने देर से ही सही, अपनी खोपड़ी के पट खोल ये जान लिया कि बच्चू, देश सिर्फ़ पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ाए दामों से ही नहीं चलता इसमें वारुणि देवी का प्रसाद भी मिलाना पड़ता है। कमाल देखिए, चालीस दिन की हाय-तौबा, डर का माहौल, दूसरे से छुल जाने का ख़तरा....सब हवा हो गया जब सुरा प्रेमी जान हथेली पर रखकर ठेकों के बाहर पहुँच गए। ऐसे पहुँचे, ऐसे पहुँचे कि सारी व्यवस्था धरी की धरी रह गई। सबसे पहले तो लाइनें तोड़ीं, फिर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाईं, इसके बाद जो चार घूंट अंदर गए तो झूम बराबर झूम शराबी.....। सारे बंधन, घुंघरु टूट गए....कि तर्ज़ पर टूट गए।
हमारे चंडूखाने के रिपोर्टर ने जानकारी दी कि दुकानें बंद रखकर सरकार का ही नुकसान हुआ। पीने वालों ने भरपूर पी....ब्लैक में पी। ठेके खुले रखते तो सारा पैसा ईमानदारी से सरकार की जेब में जाता। बेवड़ा असोसिएशन के सीनियर बेवड़े ने हमें बताया कि थैंक्स, गोरमेंट की आँखें खुलीं। वैसे अब जब ठेके खोले ही हैं तो सारे खोलते, इतनी भीड़ लगती ही नहीं, लेकिन क्या है कि ऊँची कुर्सियों पर कुछ ऐसे लोग भी बैठे हैं जो बिना पिए ही ऊँटपटाँग के निर्णय लेते हैं। जितनी पुलिस एक ठेके पर लगा रखी है उतनी में तो दस ठेके निपट जाते। अरे जहाँ तक लाइन की बात है, प्राइवेट ठेके वाले जिसे भी एक बोतल इनाम देते, वही सबकी लाइन लगवा देता। पर हमीं क्यों सारा ज्ञान दें....अब जब पैसा चाहिए तो कजरे की क़सम, सत्तर परसेंट टैक्स ठोक गया। लेकिन फिर भी हम देंगे....आख़िर इस देश का नमक खाया है और दारू भी यहीं के पानी की पीते हैं, कहते-बतियाते सीनियर बेवड़े जी नाली में जा गिरे।
तुरंत दूसरे ने मोर्चा संभाला, देखिए, ये पीकर नहीं गिरे हैं। इन दिनों ज़मीन पर कलाबाज़ियाँ लगाकर हम जनता को ये संदेश देना चाहते हैं कि कोरोना को भी हम ऐसे ही चित्त कर सकते हैं। लेकिन लड़ने के लिए ख़ुराक चाहिए और सरकार है कि सारे ठेके खोल न रही। अब आधी-अधूरी ख़ुराक से कोई लड़ाई लड़ी जाती है क्या.... बताइए। नेपथ्य से किसी सुरा प्रेमी की भौकाल सुनाई दी....कोरोना तेरी, ऐसी कम तैसी। हमसे पंगा मत ले.... इससे पहले कि हम वहाँ लपकते वह महान प्रलयंकरकारी योद्धा भी भू-नमन आसन में लोट गया।
इन दिनों फ़ोन मिलाते ही एक पकाऊ मैम बोलती हैं- डॉक्टर, स्वास्थकर्मी, सफ़ाई कर्मचारी और पुलिस आदि हमारे कोरोना वॉरियर्स हैं, इनका सम्मान करें। क्या अपनी जेब से सत्तर पर्सेंट ज़्यादा ख़र्च करके अर्थव्यवस्था बचाने की ख़ातिर दधीचि बने हमारे इन बेवड़े भाइयों का सम्मान नहीं होना चाहिए। ज़ुल्म की इंतिहा देखिए, फूल बरसाने की बजाए इन पर लट्ठ बरसाए जाते हैं। कजरे की क़सम, देखना इन्हें सताने वालों को रात में डरावने सपने नज़र आएंगे और हो सकता है सपने में यही बोतल लहराते दिखाई दें। अरे, हर बोतल पर अधिक टैक्स भरने वाला ये वो निष्पाप, धर्मानुरागी है जो चाहे सुख हो या दुख, कभी वारुणि मैया का प्रसाद चखना नहीं भूलता। ये मुमुक्षु, बिना मरे ही इस लोक में मोक्ष जैसा सुख उठाते हैं। इसलिए हे पार्थ, इनका अभिनंदन करो, बेवड़े नहीं आर्थिक धंवंतरी हैं ये.....।
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