पिछली शाम मोबाइल घनघनाया। ट्रू-कालर की कृपा से स्क्रीन पर ‘दलीप, महाराष्ट्र’ चमका। ‘इस नाम का तो कोई व्यक्ति मेरे परिचय में नहीं है।’ सोच ही रहा था कि लाल रंग से स्पैम चमका। मामला कुछ समझ में आया। खैर हैलो कहा ही था कि उधर से आवाज आई, ‘कॉलर टयून बहुत बढ़िया है। ये किस फिल्म का गाना है।’
‘फिल्मों की जानकारी मुझे कम ही है लेकिन आप कौन?’
‘गाना बहुत बढ़िया है। मेरे मोबाइल पर इसे कैसे लगा सकते हंै।’
‘किसी पढ़े लिखे लड़के से कहो, वह आपकी मदद करेगा लेकिन आपने बताया नहीं कि आप कौन?’
‘शायद राजेन्द्र कुमार हीरो था इस फिल्म में। बहुत पहले देखी थी लेकिन आज कालर टयून सुनकर मजा आ गया। दिल चाहता था- सुनता ही रहूं।’
‘तो ऐसा करो, फोन काट कर दुबारा करो, मैं बात नहीं करूंगा, तुम गाना सुनते रहना। वैसे भी तुमने अब तक नहीं बताया कि तुम हो कौन?’
‘गाना तो फिर सुन लेंगे। यह बताओ तुम्हारे यहां लाक डाउन की हालत कैसी है। यहां तो बुरा हाल है। हम सब बहुत परेशान हैं।’
‘लेकिन तुमने अब तक अपना परिचय नहीं दिया। बाकी बातें बाद में पहले बताओं तुम हो कौन?’
‘नहीं पहचाना न। बहुत दिनों बाद बात हो रही है इसलिए मेरी आवाज ही भूल गये। अच्छा पहचानने की कोशिश करो- मैं कौन हूं।’
‘अरे भाई, मैं तो अपनी आवाज भी नहीं पहचान पाता। मेरा ख्याल है तुम्हें अपना नाम जरूर याद होगा। अगर याद है तो सबसे पहले अपना नाम बताओ।’
‘ओह, आदमी जब मुसीबत में होता है तो अपने भी उसे नहीं पहचानते। कोई बात नहीं भाई, मत पहचानो। पहचानोगे तो मुसीबत में मदद करनी पड़ जायेगी।’
‘मदद तो तब करूंगा जब बताओगे कि तुम हो कौन? मदद से इंकार नहीं पर बिना जाने किसकी मदद करूं।’
‘ओह तो नहीं पहचाना न! ठीक है भाई इत्ते दिन साथ रहे पर तुम पहचान ही नहीं रहे हो। कोई बात नहीं जी।’
‘मेरी याददाश्त अब उतनी अच्छी नहीं रही। शायद तुम रामलाल हो।’
‘मुझे उम्मीद थी तुम्हारे जैसा आदमी गलती नहीं कर सकता। हां, हां मैं रामलाल ही हूं।’
‘अरे रामलाल, मैं तो तुम्हें कई दिनों से याद भी कर रहा था। हम दोनों एक साथ अमेरिका गये थे। याद है न, न्यूयार्क में पीसा मीनार देखने गये थे तो तुमने मेरी फोटो भी खींची थी।’
‘हां हां, याद है मैं तुम्हारे साथ गया था लेकिन यार मेरी समस्या तो सुन लो!’
‘तब तो तुम्हें यह भी याद ही होगा, हम वहां अब्राहम लिंकन से मिलने उनके घर गये थे। उन्होंने हमें वह किताब दी थी जिसकी कीमत उन्होंने एक सप्ताह खेत में काम करके चुकाई थी। उसी दिन हमने एफिल टावर भी देखा था। याद है न!’
‘हां हां, अच्छी तरह से याद है। लेकिन यार मेरी भी सुन ले। मेरी हालत!’
‘यार जब भी तेरे साथ अमेरिका में बिताये दिन याद करता हूं तो बहुत आनंद आता है। याद है तूने वहां के एक तालाब में मछलियां पकड़ कर सड़क के किनारे बेची थी। तब वहां का वजीरे आजम भुट्टो तेरे से खरीद कर ले
गया था लेकिन उसने पूरे पैसे नहीं दिये थे।’
‘हां हां मुझे सब याद है, लेकिन मेरी समस्या भी तो सुन लो। मेरी हालत!’
‘भुट्टो ने बकाया पैसे भिजवाये थे या नहीं? अगर नहीं भिजवाये तो बता। रोज शाम को मेरे पास आता है। सूद समेत वसूल लूंगा।’
‘ठीक है पर पहले मेरी तो सुन ले भाई। मुझे कुछ पैसों की।’
‘रामलाल मजाक मत कर। तेरे पास पैसों की कमी थोड़े ही है। तू तो अब भी जिंदा है न।’
‘नहीं भाई, लाकडाउन के चक्कर में मेरी हालत खराब है। ऐसा कर पेटीएम से मुझे .....!’
‘पैसों की चिंता मत कर। जितने चाहिए मिल जायेंगे लेकिन तुझे तो अपना नाम भी भूल गया। बता पैसे किसे भेजूं?’
‘यार मैं रामलाल ही हूं। जिस नम्बर से बात कर रहा हूं, इसी पर पेटीएम कर दे। पन्द्रह दिन बाद लौटा दूंगा।’
‘यार तू कभी मत लौटाना लेकिन पूछ तो ले मैं बोल कौन रहा हूं।’
‘क्यों मजाक करता है यार। ऐसा कर मेरे नम्बर पर ........!’
‘बेटा, अब ये कहानी पुरानी हो गई। कोई नई कहानी लेकर फोन करना तब शायद कोई फंसे। फोन काटने से पहले जान लें - तेरा नहीं, मेरा नाम रामलाल है।’
मन तो था कि उसे कुछ दूं पर सुनी सुनाई कहानी पर कोई दाद दे भी तो कैसे।
वैसे आपका इरादा क्या है। हो सकता है अब वह या उसका कोई भाई बन्धु आपको भी फोन करें। कहानी में थोड़ा बदलाव भी संभव है। आप भी तैयार रहना उसे न्यूयार्क की पीसा मीनार दिखाने के लिए। मरहूम भुट्टो से उसका बकाया दिलवाने के लिए। लिंकन की पुस्तक भी उसी के पास है। अगर फोन करे तो मांगना मत भूलना।
लॉकडाउन चलता रहेगा पर हमें लॉक में डाउन नहीं होना है।