वाराणसी।देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में मां गंगा इस बार रौद्र रूप में है।मणिकर्णिका घाट पर गंगा के पानी ने श्रद्धालुओं की आस्था को झकझोर दिया है।महाश्मशान मणिकर्णिका घाट,जहां जीवन का अंत मोक्ष का द्वार माना जाता है अब बाढ़ की लहरों में समा गया है,जलमग्न घाट पर चिताएं अब छतों पर जल रही हैं और शव यात्राएं पानी में डूबते घाटों से होकर गुजर रही हैं।काशी में अब श्रद्धा और संकट दोनों एक साथ बह रहे हैं।
मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार से व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है,लेकिन श्रद्धा के इस पवित्र केंद्र को भी इस बार भी बाढ़ ने जकड़ लिया है।घाट पर शवदाह के लिए बनी सभी चिताएं पानी में डूब चुकी हैं, अब छतों को ही शवदाह स्थल बनाया गया है।शव यात्रियों को मजबूरी में कमर भर पानी से गुजरकर मृत देह को घाट की छत तक पहुंचाना पड़ रहा है।
शवदाह के लिए जरूरी लकड़ियों की दुकानें भी गंगा में समा चुकी हैं।कई व्यापारी भारी आर्थिक नुकसान उठा रहे हैं,घाट पर पूजा-पाठ कर जीवन यापन करने वाले पंडा-पुजारी बाढ़ के से खाली बैठे हैं।विदेशी सैलानी भी गंगा आरती न देख पाने से निराश हैं।
विदेशी सैलानियों की निराशा भी कम नहीं है।साउथ कोरिया से आई सैलानी सिंहे और मिनी जियांग ने कहा कि वे गंगा आरती और सूर्योदय देखने आई थीं,लेकिन बाढ़ ने उनका यह सपना अधूरा छोड़ दिया,हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगली बार वे फिर लौटेंगी।
बता दें कि काशी के 84 घाटों में से प्रत्येक घाट इस समय जलमग्न है।बाढ़ ने न सिर्फ लोगों की दिनचर्या, बल्कि मोक्ष की आस्था को भी ठहरा दिया है।घाट पर पसरा सन्नाटा, उफनती गंगा और छतों पर जलती चिताएं यह सब मिलकर एक गंभीर और दर्दभरा दृश्य पेश कर रहे हैं, जहां श्रद्धा और त्रासदी साथ-साथ बह रही हैं।