यूपी में ब्रिटिश हुकूमत के जमाने के 6 फौलादी पुल,160 साल की उम्र कर चुके हैं पूरी,गजब की टेक्नोलॉजी,जानें इसकी खासियत 


यूपी में ब्रिटिश हुकूमत के जमाने के 6 फौलादी पुल,160 साल की उम्र कर चुके हैं पूरी,गजब की टेक्नोलॉजी,जानें इसकी खासियत 

धनंजय सिंह | 28 Jul 2025

 

लखनऊ।उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं। खासकर ब्रिटिश हुकूमत से जुड़ी विरासतों का तो यूपी में खजाना है,लेकिन इन सबके बीच ब्रिटिश हुकूमत के जमाने के कुछ ऐसे पुल हैं,जो खुद में इतिहास को समेटे हैं,इनकी उपयोगिता आज भी बनी है।इन पुलों के निर्माण की बेजोड़ तकनीक और डिजाइन ने इन्हें आज भी जस का तस बनाए रखा है,इन पर ट्रेनें गुजरती हैं तो वाहनों की आवाजाही भी पहले की तरह होती है।इनमें सबसे ऊपर प्रयागराज के पुराने यमुना पुल और बांदा के केन नदी पर बने ब्रिज का नाम आता है।आइए इन पुलों के निर्माण टेक्नोलॉजी,खासियत और इससे जुड़े इतिहास पर एक नजर डालें।

1. नैनी का पुराना यमुना पुल

प्रयागराज के नैनी में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बना यमुना पुल अगले माह 15 अगस्त को 160 साल पूरे कर लेगा,इसे बनाने में 6 साल का समय लगा था। 15 अगस्त 1865 को पहली बार इस पुल से ट्रेन गुजरी थी। इस पुल को ट्रेनों की 160 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार के लिए तैयार किया जा चुका है।यह पुल अब भी उपयोगी है,इससे प्रतिदिन लगभग 200 ट्रेनें गुजरती हैं। जब इस पुल पर ट्रेनों का आवागमन शुरू हुआ तो उस दौरान अधिकतम रफ़्तार 50 से 60 किमी प्रतिघंटा ही रहती थी।रेलवे के मिशन रफ्तार प्रोजेक्ट के तहत महत्वपूर्ण तकनीकी कार्य किए गए।इस पुल की लंबाई 1,006 मीटर है।

2. वायसराय लार्ड कर्जन के नाम पर बना पुल

प्रयागराज-अयोध्या-लखनऊ रेलमार्ग पर गंगा पर बना कर्जन पुल 115 साल की उम्र पूरी कर चुका है।इस पुल को रेल यातायात के लिए 15 जून 1905 को खोला गया था।तब इस रेलखंड का संचालन अवध और रुहेलखंड रेलवे करती थी। इस पुल से सड़क यातायात 20 दिसंबर 1905 को शुरू हुआ था।सन 1899 से 1905 तक वायसराय रहे लार्ड कर्जन के नाम पर इस पुल का नामकरण किया गया था। 1901 में इसके निर्माण को स्वीकृति मिली और जनवरी 1902 में निर्माण कार्य शुरू हुआ।

इस पुल में 61 मीटर लंबे गर्डर और 15 पिलर लगे हैं।पुल के नीचे सिंगल ब्रॉडगेज रेलवे लाइन है,जबकि ऊपर सड़क है। इस पुल की कुल लंबाई 5 किलोमीटर है।पुल के ऊपरी हिस्से में बनी सड़क की चौड़ाई 15 फीट है, जबकि दोनों तरफ 4 फीट एक इंच चौड़े दो फुटपाथ हैं।

इस पुल को असुरक्षित बताते हुए रेलवे ने 1998 में बंद कर दिया।तब पुल से गुजरने वाली अंतिम ट्रेन प्रयागराज से लखनऊ जाने वाली गंगा-गोमती एक्सप्रेस थी।इसे टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई, हालांकि अभी तक कुछ खास नहीं हो सका है।

3. बांदा केन नदी पुल

बांदा में केन नदी पर बने पुल ने भी 160 साल पूरे कर लिए हैं। इसका निर्माण 1865 में ब्रिटिश हुकूमत में हुआ था। 1965 में इस पुल की मियाद खत्म हो गई,जांच में इसे सुरक्षित पाया गया और अगले 50 साल के लिए अनुमति दी गई। 2015 में फिर से जांच की गई और इसे अगले 50 सालों के लिए सुरक्षित पाया गया।यह पुल झांसी और कानपुर रूट पर चलने वाली कई ट्रेनों के लिए महत्वपूर्ण है।सदी से ज्यादा पुराना होने के बाद भी यह अपनी इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है।इसके साथ ही ऐतिहासिक धरोहर भी है।

4. उन्नाव गंगा पुल

अपनी अनूठी बनावट वाले गंगा पुल का ऐतिहासिक महत्व है। इसका निर्माण 1870 के दशक में शुरू हुआ था।अवध एंड रुहेलखंड कंपनी लिमिटेड ने इस पुल का निर्माण कराया था, इसकी डिज़ाइन जेएम हेपोल ने तैयार किया,निर्माण कार्य एसबी न्यूटन और ई वेडगार्ड के नेतृत्व में हुआ था। इस पुल का प्रमुख उद्देश्य कानपुर और शुक्लागंज को जोड़ना था। लगभग 146 साल पुराना यह पुल पिछले साल नवंबर में ढह गया।अप्रैल 2021 में जर्जर होने के कारण इसे बंद कर दिया गया था। ब्रिटिश हुकूमत के जमाने के इस चर्चित पुल को दोबारा बनाने के लिए योगी सरकार ने हरी झंडी दे दी है।

5. कानपुर में गुजैनी पुल

शहर के दक्षिण क्षेत्र में बना यह पुल लगभग 100 साल पुराना बताया जाता है।इस पुल में न तो सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है और न ही किसी प्रकार के लोहे की सरिया का।इसे देखकर पुल से गुजरने वाले भी हैरत में पड़ जाते हैं।ब्रिटिश हुकूमत में इसे गुड़ की चासनी और अरहर दाल पानी के मिश्रण से बनाया गया।पुल में ब्रिक वर्क के निर्माण को सुर्खी और चूने के साथ तैयार किया गया था,जो बेहद मजबूत होता है।पिलर की डिजाइन ऐसी है कि अगले 50 साल से अधिक समय तक यह पुल ऐसे ही खड़ा रहेगा।ऐसे पुलों को इंजीनियरिंग की भाषा में एक्वाटेक्ट कहा जाता हैं।नदी के नीचे पहले ईंटों के ही पिलर बनाए गए हैं,इसके बाद गोलाकार रूप में छह हिस्सों में पुल बंटा है।

6. दादा नगर का पुराना पुल

कानपुर का यह पुल लगभग 100 साल पुराना बताया जाता है।शहर में उत्तर और दक्षिण को जोड़ने के लिए जब अंग्रेजों के पास किसी मार्ग का विकल्प नहीं था,तो उन्होंने सैकड़ों साल पुरानी झांसी रेलवे लाइन के पास ही एक पुल बना दिया, जिसे बाद में दादा नगर का पुल कहा गया।अंग्रेज इस पुल का उपयोग अपनी फौज को दक्षिण क्षेत्र में भेजने के लिए करते थे।


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