नई दिल्ली।संसद का मानसून सत्र ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा से बेहद गर्म है।पक्ष-विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अपना बयान दे रहे हैं।इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के सलेमपुर से सांसद रमाशंकर राजभर ने भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लोकसभा में कहा कि देश पहलगाम आतंकी हमले के बाद इसके लिए जिम्मेदार आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर नहीं बल्कि ऑपरेशन तंदूर चाहता था।
सपा सांसद रमाशंकर राजभर ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा यदि सही है तो इसका मतलब है कि हमने सैन्य और कूटनीतिक फैसला लेने की स्वतंत्रता खो दी।सपा सांसद ने कहा कि 22 अप्रैल को हमला होता है,इसके 17 दिन बाद ऑपरेशन सिंदूर चलाया जाता है। देश में इतना गुस्सा था कि वह (आतंकी हमले के) तीसरे दिन ही चाह रहा था कि ऑपरेशन सिंदूर नहीं, बल्कि ऑपरेशन तंदूर चलाया जाए और आतंकवादियों को लाकर उसी तंदूर में डाल दिया जाए।
सपा सांसद ने कहा कि रक्षा मंत्री ने इसी सदन में बताया कि हमने 100 आतंकियों को मार गिराया,लेकिन पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले वे चार आतंकी मारे गए या नहीं,यह बात सामने नहीं आई, देश जानना चाहता है।सपा सांसद ने कहा कि आतंकवादियों की मंशा थी कि वे धर्म पूछकर लोगों को मारेंगे और पूरे देश में दंगा भड़क जाएगा,लेकिन देशभर में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मिलकर इस नापाक मंसूबे को नाकाम कर दिया।
सपा सांसद ने संघर्ष विराम से संबंधित अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे का उल्लेख करते हुए कहा कि ट्रंप ने 26 बार कहा कि उन्होंने युद्ध विराम कराया है।उन्होंने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहा कि दोनों देशों को व्यापार समझौतों का हवाला देकर परमाणु युद्ध टलवाया। संघर्ष विराम कराने का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा यदि सही है तो इसका मतलब है कि हमने सैन्य और कूटनीतिक फैसला लेने की स्वतंत्रता खो दी।
सपा सांसद ने सवाल किया कि क्या भारत ने अमेरिका के कहने पर युद्ध विराम स्वीकार किया,क्या इसमें अमेरिका की कोई भूमिका थी,क्या वास्तव में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान गिराये गए थे,भारतीयों को यह बात अपने प्रधानमंत्री से सुनने को क्यों नहीं मिली, ट्रंप से सुनने को क्यों मिली। संघर्ष विराम कराने संबंधी ट्रंप की टिप्पणियां हमारी सेना के पेशेवर तौर-तरीकों को कम करके आंकती हैं, ऑपरेशन सिंदूर को गलत रूप में पेश करती हैं।
सपा सांसद ने सवाल किया कि अगर भारत की सैन्य कार्रवाई सही थी तो दुनिया के 32 देशों में 59 सदस्यीय (सर्वदलीय) प्रतिनिधिमंडल क्यों भेजे गए और उसका क्या लाभ हासिल हुआ,पहलगाम हमले के कुछ ही हफ्ते बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा वाशिंगटन आमंत्रित करना आतंकवाद समर्थक एक संस्था को वैश्विक वैधता देने जैसा था और भारत सरकार राष्ट्रीय शोक के समय भी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में विफल रही।
सपा सांसद ने कहा कि पहलगाम में धर्म के आधार पर हत्याएं होने के बावजूद भारत न तो इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी (इस्लामिक सहयेाग संगठन) में इस झूठे विमर्श को चुनौती दे सका और न ही मुस्लिम जगत से एकजुटता हासिल कर सका, जबकि ये देश भारत के करीबी सहयोगी थे।