‘हैलो,सर प्रणाम।बहुत दिन हुए आपके दर्शन नहीं हुए।काम भी बड़ा मंदा चल रहा है,कुछ काम दीजिये न। प्रखण्ड विकास अधिकारी हैं आप...कितना कुछ करवा सकते हैं।’
’अरे काम तो बहुत है, जगह जगह पेड़ गिर गए हैं,उनको उठवाना है लेकिन आप भी कुछ सहयोग कीजिये।’
’कैसा सहयोग आदरणीय,हुक्म कीजिये न, क्या सेवा करें।’
’अरे,हमें कोई व्यक्तिगत सहयोग नहीं चाहिए। बस विद्या का प्रचार प्रसार करने में मदद चाहिए। कल ही हमारी प्रेरक पुस्तक आई है। विद्यार्थियों व युवाओं में पहुंचानी है। अब 400 रूपये की पुस्तक हर कोई तो खरीद नहीं सकता। आप जैसे 10/15 समाजसेवी 100/200 पुस्तकें भी बांटें तो हजारों बच्चे इससे लाभान्वित हो सकते हैं।’
घाघ ठेकेदार ने मन ही मन हिसाब लगाया कि 200 प्रतियों के तो रू 80,000 हो गए। उधर प्रखण्ड अधिकारी को अपनी जेब में आते रू 40,000 दिख रहे थे, प्रकाशक से कमीशन के रूप में जो लेखकीय डिस्काउंट था।
ठेकेदार बोला, ’अरे साहब,आजकल किताब कौन पढ़ता है फिर भी आप कहेंगे तो 100 कौपी बाँट देंगे।’
अधिकारी ने कहा, ’अच्छा, आप रहने दीजिये,अभी अभी व्हाट्सएप पर मैसेज आया है। एक संस्था पेड़ों को मुफ्त में उठवाने के लिए तैयार है क्योंकि लकडि़याँ बिकेंगी तो उनके पैसों से उनका खर्च भी निकल जाएगा और संस्था में जनसेवा के लिए पैसे भी आ जाएंगे।फिर आपको सरकार रू 5,00,000 का ठेका क्यों दे।’
ठेकेदार एक झटके में पिघल गया, उसने झट 250 प्रतियों का आर्डर दे दिया।
6 महीने में ही साहब की पुस्तक बेस्ट सेलर की सूची में शामिल हो गई। जश्न की पार्टी में आए ठेकेदार और प्रकाशक उनसे जल्दी से जल्दी नई पुस्तक लिखने का आग्रह कर रहे थे।
एक कोने में खड़ा अधिकारी साहब का घोस्ट राइटर भी बेहद खुश था क्योंकि उसे भी 10,000 की आने वाली कमाई दिखने लगी थी। (युवराज)