जब लालकिले के किनारे बहती थी यमुना,मुगल बादशाह अकबर नाव बांधकर सोता था:धनंजय सिंह 


जब लालकिले के किनारे बहती थी यमुना,मुगल बादशाह अकबर नाव बांधकर सोता था:धनंजय सिंह 

धनंजय सिंह | 06 Sep 2025

 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के इतिहास में यमुना नदी का रिश्ता सिर्फ पानी का नहीं,बल्कि सत्ता,संस्कृति और कहानियों का भी रहा है।बाढ़ से एक बार फिर यमुना नदी चर्चा में है।यमुना के किनारे कभी मुगल बादशाह अपनी रातें गुजारते थे।मुगल बादशाह अकबर से लेकर जहांगीर तक यमुना से गहरा नाता रखते थे।गर्मी की तपती रातों में अकबर यमुना में नाव बांधकर सोता था,ताकि ठंडी हवा और पानी की लहरों के बीच सुकून मिले।जहांगीर भी इस परंपरा को निभाते थे।

शाहजहां के लिए मनोरंजन की साधन थी यमुना 

शाहजहां ने अपनी राजधानी जब दिल्ली में स्थानांतरित की तो तो यमुना उनके लिए मनोरंजन का साधन बनी।रात के समय लालकिले के रिवर गेट से शाहजहां के हरम की महिलाएं,रानियां और दासियां नौकायन और स्नान के लिए निकलती थीं।साथ हिजड़े भी होते थे,जो अंगरक्षक के रूप में काम करते थे।यमुना के किनारे महफिल सजती थी।शाही नावें रात में यमुना पर तैरती थीं,इनमें दीपक जलते थे और संगीत की धुनें गूंजती थीं।

तैराकी का उत्सव और उस्ताद-ए-तैराकी

यमुना सिर्फ शाही शौक का हिस्सा नहीं थी,बल्कि यह मुगल शहजादों की हिम्मत और हुनर का भी इम्तिहान लेती थी। सावन और भादो में तैराकी का मेला लगता था।दिल्ली में भले ही तैराकी के मेले उतने मशहूर न हुए,लेकिन शाही परिवार की रानियां और शहजादे रात के अंधेरे में सावन और भादो में यमुना में तैराकी का लुत्फ उठाते थे,ताकि लोगों की नजरों से बचा जा सके।जब शहजादा सलीम यानी जहांगीर किशोरावस्था में पहुंचे तो न्हें सावन और भादो में आयोजित होने वाले सालाना तैराकी मेले के दौरान आगरा किले से सैय्यद का बाग तक नदी में तैराया गया। जहांगीर ने यमुना की बाढ़ वाली धाराओं का सामना किया और दूसरी तरफ उतरे। जहां जहांगीर ने बाग में चिरागी (सम्मान के दीपक) चढ़ाए और मुगल दरबार के सर्वश्रेष्ठ तैराक मीर मछलीली से उस्ताद-ए-तैराक(तैराकी का उस्ताद) की उपाधि जीती।

औरंगजेब और यमुना की बाढ़

औरंगजेब के शासनकाल में 1660 के आसपास यमुना की बाढ़ ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था।यमुना का पानी लालकिले के दीवान-ए-आम तक पहुंच गया था।उस समय औरंगजेब ने अपने सिपहसालारों को आदेश दिया कि नदी के किनारे बांध बनाए जाएं,ताकि भविष्य में ऐसी तबाही से बचा जा सके। यमुना ने दिल्ली के बाजारों,खासकर चांदनी चौक और दरियागंज को भारी नुकसान पहुंचाया था।

जब दिल्ली में आई थी बड़ी बाढ़

1900 की शुरुआत में यमुना की एक और बाढ़ ने दिल्ली को प्रभावित किया। 1924 की बाढ़ को स्थानीय लोग आज भी बड़ी बाढ़ के नाम से याद करते हैं। 1924 में यमुना का पानी पुरानी दिल्ली के कई मोहल्लों में घुस गया था।लोग यमुना को शांत करने के लिए नदी में फूल और दीपक प्रवाहित करते थे। इस दौरान एक बुजुर्ग फकीर,जिन्हें यमुना वाले बाबा कहा जाता था।यमुना वाले बाबा ने दावा किया कि उनकी तपस्या से बाढ़ का पानी कम हुआ।

1857 की क्रांति और यमुना

1857 की क्रांति के दौरान यमुना फिर इतिहास की गवाह बनी।मेरठ से आए सिपाहियों ने यमुना पार की और राजघाट गेट से दिल्ली में प्रवेश किया।इस घटना ने शाही दरबार और शहर में हड़कंप मचा दिया,जो कई महीनों तक रहा और आखिरकार बहादुर शाह जफर को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी।


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