कोरोना की दूसरी लहर का देश के आर्थिक विकास पर असर


कोरोना संक्रमण के चलते आज जिस प्रकार विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन किया जा रहा है उसे देखते हुए देश की कारोबारी स्थिति भी संकटमय होती जा रही है। इसे मजबूत बनाये रखने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाने जरूरी होंगे जिससे सभी प्रकार के व्यवसायों में लगे लोगों को अपनी आजीविका के सुरक्षित रहने का आभास हो सके। सबसे पहले हमें देश के लघु व मध्यम दर्जे के उद्योगों में लगे लोगों को आर्थिक सुरक्षा का माहौल देना होगा जिसके लिए ‘शॉप एक्ट’ से लेकर फैक्टरी एक्ट तक में आने वाली सभी इकाइयों के नियोक्ताओं के लिए कोरोना पैकेज

अशोक भाटिया | 18 May 2021

 

अब वित्त मंत्रालय भी मान रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर का देश के आर्थिक विकास पर असर दिख रहा है। वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2021) की आर्थिक विकास दर में गिरावट की आशंका है हालांकि कोरोना की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर का आर्थिक विकास पर नहीं के बराबर असर रहेगा। वित्त मंत्रालय को एक बार फिर से कृषि क्षेत्र से अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आर्थिक गतिविधियों को समर्थन मिलने की उम्मीद है।आर्थिक कार्य विभाग की तरफ से अप्रैल के लिए जारी मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर में रोजाना आने वाले मामलों की संख्या नए शीर्ष पर पहुंचती दिख रही है। रोज होने वाली मौत और संक्रमण की दर अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए चुनौती पैदा कर रही है। स्थानीय पाबंदियों से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर गिरने का जोखिम है।

कोरोना संक्रमण के चलते आज जिस प्रकार विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन किया जा रहा है उसे देखते हुए देश की कारोबारी स्थिति भी संकटमय होती जा रही है। इसे मजबूत बनाये रखने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाने जरूरी होंगे जिससे सभी प्रकार के व्यवसायों में लगे लोगों को अपनी आजीविका के सुरक्षित रहने का आभास हो सके। सबसे पहले हमें देश के लघु व मध्यम दर्जे के उद्योगों में लगे लोगों को आर्थिक सुरक्षा का माहौल देना होगा जिसके लिए ‘शॉप एक्ट’ से लेकर फैक्टरी एक्ट तक में आने वाली सभी इकाइयों के नियोक्ताओं के लिए कोरोना पैकेज घोषित करना होगा जिससे लॉकडाउन के दौरान हुए इनके नुक्सान का मुआवजा मिल सके और इनमें नौकरी कर रहे करोड़ों लोगों की नौकरी पर कोई आंच न आ पाये। बेशक इस पैकेज में शुल्क छूट से वित्तीय मदद के प्रावधान हो सकते हैं जिनकी भरपाई लॉकडाउन लगाने वाली राज्य सरकारों को ही करनी होगी मगर यह भी हकीकत है कि राज्य सरकारें यह काम अपने बूते पर नहीं कर सकती क्योंकि जीएसटी लागू होने के बाद इनके वित्तीय अधिकार बहुत सीमित रह गये हैं और सिकुड़ गये हैं। अतः बहुत जरूरी है कि सबसे पहले जीएसटी कौंसिल की बैठक बुलाई जाये जिसमें कोरोना से प्रभावित राज्यों की निशानदेही करके उन्हें अपने क्षेत्रों में आवश्यक कारगर कदम उठाने की छूट दी जाये।


पूरे देश के विभिन्न राज्यों को इस कौंसिल ने उत्पादन व खपत वाले राज्यों में बांट कर सकल शुल्क प्राप्तियों में उनकी भागीदारी इस प्रकार तय की थी कि उत्पादन वाले राज्यों को राजस्व घाटा न हो सके। इसके लिए केन्द्र ने पांच साल तक इनका घाटा अगले पांच साल तक अपने खजाने से पूरा करने की गारंटी दी थी। कोरोना संकट से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि लॉकडाउन करने वाले राज्यों की अर्थ व्यवस्था प्रभावित हो सकती है अतः यह जिम्मेदारी देश के वित्त मन्त्रालय की ही बनती है कि वह कौंसिल की बैठक बुला कर इस मुद्दे पर राज्यों को आश्वस्त करे कि उनके आर्थिक नुक्सान की भरपाई केन्द्र अपने खजाने से करने में पीछे नहीं हटेगा। ये उपाय अर्थव्यवस्था को संभालने का काम करेंगे यह तय है।  फैसला अब जीएसटी कौंसिल को करना है कि अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने से जूझ रहे राज्यों की मदद की जाए।  कौंसिल या परिषद में राज्यों के पास तीन चौथाई मताधिकार है जबकि केन्द्र के पास एक चौथाई मत हैं। इसका हर फैसला सर्वसम्मति से ही होता है। अतः बहुत आवश्यक है कि परिषद कोरोना संक्रमण का संज्ञान लेते हुए उन करोड़ों लोगों के रोजगार को बचाये जो लघु व मध्यम क्षेत्र में लगे हुए हैं।

बेरोजगारी का आलम यह है कि यह अपने चरमोत्कर्ष पर आठ प्रतिशत से ऊपर है।  हम खुश नहीं हो सकते कि जीएसटी शुल्क की उगाही में उठान आया है। हमें देखना यह होगा कि कितनी लघु व मध्यम श्रेणी की औद्योगिक इकाइयां पूरे देश में बन्द हो चुकी हैं अथवा कितनी ऐसी हैं जिनकी उत्पादन क्षमता आधे पर पहुंच गई है और इनके कर्मचारियों की संख्या भी इसी अनुपात में घट गई है। इस समय सबकी निगाह सरकार पर है।  इसलिए जरूरी है कि हम पुनः इस स्थिति में और इजाफा होने की संभावनाओं को पहले से ही टालने के पुख्ता इंतजाम करें और सुनिश्चित करें कि कोई भी राज्य इस महान संकट के समय स्वयं को असहाय महसूस न करें और इसके लोग और अधिक आर्थिक विपन्नता के चक्र में न फंस सकें। भारत के महान राजनैतिक दार्शनिक और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य के ये शब्द हमें हमेशा याद रखने चाहिए कि किसी भी राज में महामारी के समय राजा का राजकोष सिर्फ प्रजा के हित में इस प्रकार प्रयोग किया जाना चाहिए जैसे किसी सामूहिक भोज में आने वाले व्यक्ति के लिए सभी व्यंजन बिना किसी भेदभाव के परोसे जाते हैं।

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