वाइफ साइंस का पहला  अध्याय


झगड़ालू पत्नियां - कुछ पत्नियां बड़ी झगड़ालू होती हैं। ऐसी पत्नी के कारण घर अक्सर पार्लियामेण्ट हाउस बना रहता है। इस स्थिति में पति को सलाह दी जाती है कि वह घर में वाकमैन सुनता हुआ घुसे। यदि पत्नी झगड़ना शुरु करे तो भी सुनता रहे। थोड़ी देर पति को ‘पॉप’ सुनते देखकर पत्नी पैर पटक कर स्वयं खामोश हो जायेगी।

मूलचन्द बांसल | 23 May 2021

 

इतने विषय, इतना ज्ञान विज्ञान, फिर भी मानव परेशान। मैंने चिंतन किया कि ये सब विषय और विज्ञान आदमी की परेशानियां बढ़ाने के सिवाय और कुछ नहीं करते। कोई ऐसा विषय खोजा जाना चाहिये जिससे मानवता का कुछ भला हो सके।

मैंने महसूस किया कि कुछ अविवाहित पुरूष इसलिये चिंतित हैं कि उनकी शादी नहीं हुई तो कुछ विवाहित पुरूष सोचते रहते हैं काश। उनकी पत्नी कुछ दिन के लिये ही सही (पूर्ण रूप से न सही), मायके चली जाती। इसी स्थिति ने मुझे पत्नी जैसे विषय पर अध्ययन करने को विवश किया। इसी के परिणामस्वरूप वाइफ साइंस जैसा विषय अस्तित्व में आया।

इस विषय को डिस्कस करने से पहले मैं शादी को डिफाइन करना चाहता हूं। मेरे विचार में शादी वह संस्कार है जिसके बिना न गति (मोक्ष) है न दुर्गति। ’वाइफ साइंस’ का नाम मैं ’पत्नी पुराण’ रखना चाहता था परंतु मेरे एक मित्रा  ने सुझाव दिया-अरे जब अठारह पुराणांे की कोई पूछ नहीं है तो तेरे इस उन्नीसवें पुराण को कौन पढ़ेगा। नाम ऐसा रखो जिसमें कुछ सेक्स अपील  हो। मेरे विचार में इसका नाम ‘वाइफ साइंस‘ रख दो।

मैंने ऐसा ही किया परंतु इसका मतलब यह कदापि नहीं कि ‘वाइफ साइंस‘ कोई विज्ञान है बल्कि कोई विद्वान इसे विज्ञान सिद्ध करने की कोशिश भी न करे क्योंकि यह खालिस कला है। लिखना इसलिये आवश्यक समझता हूं क्योंकि होता यह है कि कई विषयों का पहला अध्याय इसी बात पर बहस करते प्रारम्भ और समाप्त हो जाता है कि विषय विज्ञान है या कला। बीस तीस पृष्ठों की बहस के बाद निष्कर्ष निकाला जाता है कि विषय न विज्ञान है न कला बल्कि  यह विज्ञान और कला की सीमा पर खड़ा है। बेचारे पढ़ने वाले माथा पीटकर विषय विशेषज्ञों को कोसते हैं कि महानुभावांे, दो-चार पृष्ठ और भरकर इसे इधर या उधर तो कर देते।

‘वाइफ साइंस’ का पहला अध्याय पत्नियों के वर्गीकरण और उनसे निपटने के उपायों पर प्रकाश डालता है जो इस प्रकार हैं।

शक्की पत्नियां - कुछ पत्नियां बड़ी शक्की होती हैं। पति के कोट पर बाल देखकर या पति द्वारा भोजन में एक चपाती कम लेते ही इनके दिमाग में किसी जासूसी धारावाहिक की सी ध्वनि बजने लगती है। फिर ‘आज क्या लिया?’ ‘किसके साथ खाया?’ जैसे प्रश्नों की झड़ी लग जाती है। ऐसी पत्नियों से बचने का उपाय है कि जिस वेशभूषा में पति सुबह काम पर गया, उसे उसी शान बान व साफ सफाई से घर लौटना चाहिये। यदि बाहर कुछ खा भी लिया हो तो घर में अपनी डाइट में कमी न आने दें भले ही बाद में पूरी शीशी हाजमोला की क्यों न खानी पड़े।

लोभी पत्नियां - कुछ पत्नियां बड़ी लोभी होती हैं। यदि उनके संचयकोश में विस्तार न हो तो वे उग्र रुप भी धारण कर सकती हैं। ऐसी पत्नियों से पीडि़त पति अपने मैले कपड़े उतारते समय कुछ छोटे-मोटे नोट जानबूझ कर जेब में रखकर भूल जायें तो अच्छा होगा। यह सस्ता और बेहतर इलाज है क्योंकि ऐसे ही जोड़ी गई राशि कई बार मुसीबत के समय काम आ जाती है।

झगड़ालू पत्नियां - कुछ पत्नियां बड़ी झगड़ालू होती हैं। ऐसी पत्नी के कारण घर अक्सर पार्लियामेण्ट हाउस बना रहता है। इस स्थिति में पति को सलाह दी जाती है कि वह घर में वाकमैन सुनता हुआ घुसे। यदि पत्नी झगड़ना शुरु करे तो भी सुनता रहे। थोड़ी देर पति को ‘पॉप’ सुनते देखकर पत्नी पैर पटक कर स्वयं खामोश हो जायेगी।

अपव्ययी पत्नियां - कुछ पत्नियां बड़ी खर्चीली होती हैं। पति की कमाई को वे यूं उड़ा देती हैं जैसे सांसद अपने कोटे की विकास निधि को। बेचारा पति डरता रहता है कहीं उसे कंजूस की उपाधि न मिल जाये। ऐसे पति को परामर्श दिया जाता है कि वह कंजूस को गाली न मानकर जिम्मेदार नागरिक के अलंकरण के रुप में ले।

सरल पत्नियां - ऐसी पत्नियां पति को परमेश्वर मानती हैं और उनके सुख-दुख को अपना मानती हैं परंतु ऐसी पत्नियां बब्बर शेर की तरह विलुप्त होने के कगार पर हैं। कुछ टी.वी. सीरियलों और महिला संगठनों ने इनके सफाये का अभियान चलाया हुआ है। अतः पुरुषों को सजग होकर पत्नियों की इस दुर्लभ प्रजाति को बचाने के प्रयास करने चाहिये वरना यह इतिहास कथाओं तक सिमट कर रह जायेगी।

‘वाइफ साइंस’ के इस नये विषय का शुभारम्भ मैंने कर दिया है। इस विषय के विकास के लिये सभी विवाहित, विवादित पतियों से सुझाव सादर आमंत्रित हैं।


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