लखनऊ में टी-20 मैच रद्द होने के बाद प्रदूषण को लेकर सियायत गरमाई,अखिलेश यादव के आरोपों पर योगी सरकार ने जारी किया एक्यूआई का डेटा


लखनऊ में टी-20 मैच रद्द होने के बाद प्रदूषण को लेकर सियायत गरमाई,अखिलेश यादव के आरोपों पर योगी सरकार ने जारी किया एक्यूआई का डेटा

धनंजय सिंह | 18 Dec 2025

 

लखनऊ।उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में टी-20 मैच रद्द होने के बाद वायु प्रदूषण को लेकर सियायत गरमा गई है। योगी सरकार लखनऊ में एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर 174 बता रही है। पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि दिल्ली का प्रदूषण अब लखनऊ पहुंच गया है।सपा ने कल से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में प्रदूषण पर विशेष चर्चा कराने की मांग की।सपा विधायक रविदास मल्होत्रा का कहना है कि सरकार प्रदूषण कम करने का कोई काम नहीं कर रही है।सरकार के सब दावे और आंकड़े झूठे हैं।सीएम योगी की फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी हैं मगर ये आंकड़े झूठे हैं,ये दावे किताबी हैं।

ओमप्रकाश राजभर ने दिया जवाब

सपा के आरोपों पर योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि प्रदूषण लखनऊ में नहीं,दिल्ली में है।विपक्ष हर मुद्दे पर सियासत करता है।राजभर ने कहा कि अगर लखनऊ में प्रदूषण है तो अखिलेश यादव तो मास्क नहीं लगा कर चल रहे हैं।हमारी एजेंसी सही है,हम उसी को मानेंगे। दुनिया क्या कह रही है,इससे हमें क्या मतलब। दिल्ली जैसे हालात लखनऊ के होने में बहुत टाइम लगेगा।

लखनऊ में 174 है एक्यूआई 

योगी सरकार के मुताबिक़ लखनऊ का एक्यूआई 174 है जो हवा की मॉडरेट क्वालिटी को प्रमाणित करता है।सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्म पर एक्यूआई से संबंधित भ्रामक आंकड़े प्रचारित और प्रसारित किए जा रहे हैं जो वायु गुणवत्ता बताने वाले निजी एप से लिए गए हैं। 

अखिलेश यादव ने उठाए थे सवाल

बता दें कि कल लखनऊ में घने कोहरे के से भारत और साउथ अफ्रीका का टी-20 मैच रद्द हो गया था।अखिलेश यादव ने भी प्रदूषण पर सवाल खड़े किए थे।योगी सरकार के मुताबिक अधिकतर विदेशी प्लेटफॉर्म US-EPA मानकों का उपयोग करते हैं,जबकि भारत में नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स का पालन किया जाता है।दोनों के मापदंड अलग-अलग हैं। साथ ही सरकारी स्टेशन (जैसे लालबाग, तालकटोरा, अलीगंज) प्रमाणित और कैलिब्रेटेड उपकरणों का उपयोग करते हैं। निजी संस्थाएं अक्सर सैटेलाइट डेटा या अनकैलिब्रेटेड सेंसर का प्रयोग करती हैं, जिनमें त्रुटि की संभावना अधिक होती है।

सीपीसीबी का डेटा 24 घंटे के औसत पर आधारित

सीपीसीबी द्वारा जारी एक्यूआई आंकड़े पिछले 24 घंटों के औसत वैज्ञानिक मूल्यांकन पर आधारित होते हैं,जिससे शहर की वास्तविक और समग्र वायु गुणवत्ता की स्थिति सामने आती है। इसके विपरीत कई निजी ऐप्स क्षणिक और स्थानीय धूल और कणों को दिखाते हैं,जो किसी एक चौराहे, ट्रैफिक जाम या सीमित गतिविधि के कारण हो सकते हैं और पूरे शहर की स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते।

तकनीकी अंतर से पैदा होता है भ्रम

एक्यूआई मापने की तकनीक और मानकों में अंतर के कारण निजी ऐप्स पर दिखाई देने वाले आंकड़े अक्सर भ्रामक हो जाते हैं।सीपीसीबी का मॉडल भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया गया है, जबकि अधिकतर निजी ऐप विदेशी परिस्थितियों पर आधारित होते हैं, जो भारत की भौगोलिक, मौसमी और पर्यावरणीय स्थितियों को सही तरीके से आंकने में सक्षम नहीं हैं।

धूल और धुएं में अंतर नहीं कर पाते निजी ऐप्स

विशेषज्ञों के अनुसार कई निजी ऐप धूल कण और धुएं के बीच अंतर नहीं कर पाते। भारतीय शहरों में धूल की मात्रा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है,लेकिन विदेशी मॉडल इसे सीधे प्रदूषण मान लेते हैं। इसी कारण एक्यूआई को वास्तविकता से अधिक दिखाया जाता है और अनावश्यक डर का माहौल बनता है।

एक ही शहर के लिए अलग-अलग आंकड़े

यह भी सामने आया है कि निजी ऐप्स एक ही शहर के अलग अलग इलाकों के लिए अलग-अलग एक्यूआई दिखाते हैं, जो समग्र शहरी स्थिति नहीं बताते। ऐसे आंकड़े न तो प्रमाणिक होते हैं और न ही किसी आधिकारिक एजेंसी द्वारा सत्यापित, जिससे आमजन में भ्रम और चिंता फैलती है।

भ्रामक आंकड़ों से फैलाई जा रही चिंता निराधार

निजी ऐप के आधार पर फैलाया जा रहा डर तथ्यहीन और निराधार है।लखनऊ का एक्यूआई मध्यम श्रेणी में है, स्थिति नियंत्रण में है और घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। नागरिकों से अनुरोध है कि केवल सीपीसीबी और सरकारी स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर ही भरोसा करें।


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