देवताओं की सभा चल रही थी। इन्द्र गंभीर मुद्रा में थे कि इतने सारे पैगंबर, महापुरुष, देवता और स्वयं भगवान कृष्ण के पृथ्वी-आरोहण के बाद भी मनुष्य नामक प्राणी क्यों एक-दूसरे के ऊपर चढ़ा जा रहा है। क्यों एक-दूसरे का धर्मांतरण करवाया जा रहा है? विमर्श के बीच वीणा बजाते नारद जी आ पहुँचे। उनके सुझाव पर तय किया गया कि पृथ्वी लोक से जुड़े ज़िम्मेदार देव-जन को बुलाकर पूछा जाए कि चूक कहाँ हुई। तुरंत देवी, हनुमान और भगवान कृष्ण का आह्वान किया गया।
हाथ जोड़ इन्द्र ने सर्वप्रथम मातृ शक्ति से पूछा- माँ, जब सब मार्ग यहीं आकर मिलते हैं तो फिर धर्म के नाम पर झगड़ा क्यों? माँ गंभीर स्वर में बोलीं- इन्द्र, ये हाड़-मांस के बने साधारण मनुष्य हैं जो चमत्कार को ही नमस्कार करते हैं। इन्हें लगता है कि धर्म-परिवर्तन कर लेने से इन्हें वांछित फल की प्राप्ति हो जाएगी। ये नहीं जानते कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है। कोई पुस्तक या व्याख्या अंतिम नहीं है...ये संसार है जो शाश्वत नियमों से चलता है।
इन्द्र ने माता को हाथ जोड़ प्रणाम किया और फिर भगवान कृष्ण को देखने लगे। सुदर्शन चक्रधारी, इन्द्र का मंतव्य समझ गए। बोले- मनुष्य को समझना बहुत कठिन है वत्स। इसे कितना ही समझाओ, सत्य के नित उद्घाटन करवाओ किंतु ये अपने अनुसार ही चलेगा। त्रेता में अधर्मी रावण को मारा, द्वापर में धर्म-स्थापना हेतु महासंग्राम हुआ। लोग अधर्म के मार्ग पर न चलें, इस हेतु मैंने अर्जुन को अपना विराट-स्वरूप दिखा ये तक कहा कि सब कुछ मैं ही हूँ....जल से लेकर असीम ब्रह्मांड तक मेरा ही विराट-स्वरूप है। तुम चाहे किसी भी मार्ग को अपनाओ, सब मार्ग एक ही स्थान पर मिलते हैं। फिर भी न जाने क्यों, कुछ मनुष्य अपने ही मार्ग को श्रेष्ठ बता रहे हैं। इन मूर्ख संतानों को मैं भला क्या कहूँ...।
अब बारी आई हनुमान की। हनुमान बोले- मैं ख़ुद कंफ्यूज़ हूँ। कोई मुझे कहता है हनुमान, तो कोई ज़ोर से कहता है बजरंग बलईईई...। अब बली हो, अली हो या बैजरंग बलि, मुझे क्या फ़र्क़ पड़ेगा....मेरी ओर से तो सबकी मदद हो जाती है। लेकिन मुझे लगता है कि कलयुग में सारा कंफ़्यूज़न अल्लाह, गॉड या भगवान को लेकर है। क्या ये तीनों अलग़ हो गए हैं....शायद भोलेनाथ कुछ मार्ग दिखाएं।
देवताओं ने तुरंत कैलाश पर दौड़ लगा दी। भोलेनाथ जानते थे समस्या क्या है। बोले- इसमें परेशान होने की भला क्या बात है। अल्लाह कहो, गॉड कहो या भगवान, क्या फ़र्क़ पड़ता है। परम सत्ता किसी को निराकार, किसी को साकार दिखती है। अरे मनुष्य को चाहिए वे अपने कर्मों पर ध्यान दें, हमारे अस्तित्व की पड़ताल न करें। वर्षा की बूंद जिस पात्र में गिरती है, वह उसी नाम से जानी जाती है, फिर मेरा मार्ग ही श्रेष्ठ है, ऐसी भावना क्यों? इस ईश्वरीय कथन को सुन देवता नतमस्तक हो गए, सब अपने-अपने लोकों में प्रस्थान कर गए। लेकिन बात अभी बाक़ी है रमेश बाबू, दो चुटकी सिंदूर की क़ीमत.....ख़ैर छोड़ो।
हमारे चंडूखाने के ख़बरचियों ने फ़रमाया है कि ऊपर जल्द ही नया आदेश जारी होने वाला है कि जो भी दूसरे के धर्म में जबरन टाँग अड़ाएगा, उसे बदलने की कोशिश करेगा, उसे न तो स्वर्ग दिया जाए और न ही जन्नत। नर्क और दोज़ख तो वैसे भी हाउस फुल चल रहे हैं। ऐसे में उन्हें त्रिशंकु की तरह अधर में लटकाने का प्रस्ताव है। चंद लालच में ईमान बदलने वालो.....सोच लो, अधर में लटके रहने से अच्छा है, जैसे हो, जहाँ हो, वही बने रहो, क्यों ख़ामख़ां मरने के बाद भी टेंशन लेते हो....बाई गॉड की क़सम से।
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