डिजिटल करेंसी के रूप में भारत ने बढ़ाया पहला कदम


देश की अपनी डिजिटल करेंसी के रूप में पहला कदम बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ई-रूपी व्यवस्था लांच की है। ई-रूपी, एक इलेक्ट्रॉनिक वाउचर आधारित डिजिटल पेमेंट सिस्टम है। ये नगदी के लेनदेन का एक कैशलेस और कान्टैक्टलेस डिजिटल पेमेंट्स माध्यम है। ई-रूपी, मोबाइल फोन पर एक एसएमएस स्ट्रिंग या क्यूआर कोड के रूप में प्राप्त होगा। यह एक गिफ्ट वाउचर के जैसा होगा जिसे बिना किसी क्रेडिट या डेबिट कार्ड या मोबाइल ऐप या इंटरनेट बैंकिंग के खास सेंटर्स पर रिडीम कराया जा सकेगा।

अशोक भाटिया | 22 Aug 2021

 

देश की अपनी डिजिटल करेंसी के रूप में पहला कदम बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ई-रूपी व्यवस्था लांच की है। ई-रूपी, एक इलेक्ट्रॉनिक वाउचर आधारित डिजिटल पेमेंट सिस्टम है। ये नगदी के लेनदेन का एक कैशलेस और कान्टैक्टलेस डिजिटल पेमेंट्स माध्यम है। ई-रूपी, मोबाइल फोन पर एक एसएमएस स्ट्रिंग या क्यूआर कोड के रूप में प्राप्त होगा। यह एक गिफ्ट वाउचर के जैसा होगा जिसे बिना किसी क्रेडिट या डेबिट कार्ड या मोबाइल ऐप या इंटरनेट बैंकिंग के खास सेंटर्स पर रिडीम कराया जा सकेगा। लांचिंग के दौरान सबसे पहले इस ई-वाउचर का इस्तेमाल वैक्सीनेशन सेंटर पर भुगतान के रूप में किया गया। पीएम नरेंद्र मोदी ने लांचिंग के दौरान इसपर कहा कि ई-रूपी वाउचर देश में डिजिटल ट्रांजेक्शन को, डीबीटी को और प्रभावी बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाला है। इससे टार्गेटिड, ट्रांसपेरेंट और लीकेज फ्री डिलीवरी में सभी को बड़ी मदद मिलेगी। ई-रूपी को नेशनल पेमेंट्स कारपोरेशन आफ इंडिया (एनपीआईसी), डिपार्टमेंट आफ फाइनेंशियल सर्विसेज, मिनिस्ट्री आफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर और नेशनल हेल्थ अथारिटी ने मिलकर लांच किया है। ये सिस्टम पर्सन-स्पेसिफिक और पर्पज स्पेसिफिक होगा, जो यूपीआई पर आधारित है। इसके माध्यम से बिना किसी फिजिकल इंटरफेस के सर्विसेज उपलब्ध कराने वाले को बेनेफिशरीज और सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ कनेक्ट कराया जा सकेगा।

शुरूआत में यह एक प्रीपेड गिफ्ट वाउचर की तरह होगा और विशेष केन्द्रों पर बिना किसी क्रेडिट या डेविट कार्ड, मोबाइल ऐप या इंटरनेट बैंकिंग के रिडीम किया जा सकेगा। किसी भी कार्पोरेट या सरकारी एजेंसी को अगर किसी को किसी उद्देश्य के लिए भुगतान करना है तो उन्हें सहयोगी सरकारी बैंक या प्राइवेट बैंक से सम्पर्क करना होगा। अमेरिका, कोलम्बिया, स्वीडन, चिली और हांगकांग जैसे देशों में एजूकेशन वाउचर्स या स्कूल वाउचर्स का एक सिस्टम है जिसके जरिए सरकार, छात्रों को पढ़ाई के लिए भुगतान करती है। यह सब्सिडी सरकारें सीधे माता-पिता को अपने बच्चों को शिक्षित करने के विशेष उद्देश्य से दी जाती है। भारत में फिलहाल इसका उपयोग सरकारी योजनाओं में किया जाएगा। निजी सैक्टर भी अगर अपने कर्मचारियों को सहायता देना चाहता है तो वह कर्मचारी कल्याण फंड या कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी प्रोग्राम के तहत इन डिजिटल वाउचर्स का उपयोग कर सकेंगे। ई-रूपी के लांच होने से देश में डिजिटल ट्रांजेक्शन को नया आयाम मिलेगा। जब 6 वर्ष पहले डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी तब बहुत से लोग इसकी आलोचना भी करते थे। उनका कहना था कि डिजिटल टैक्नीक तो अमीरों के लिए है, गरीब आदमी के पास साधन ही नहीं हैं। लेकिन देखते ही देखते काफी कुछ बदल गया। अब तो हर एक के हाथ में मोबाइल फोन है। अब यह टैक्नोलाजी गरीबों की मदद के लिए, उनकी प्रगति के लिए एक उपकरण के रूप में देख रहे हैं। आप अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो आप पाएंगे कि लोग मोबाइल बैंकिंग से ही कामकाज कर रहे हैं।

रिजर्व बैंक आफ इंडिया भी डिजिटल करेंसी लाने की योजना पर काम कर रहा है। ई-रूपी की लांचिंग के बाद देश में डिजिटल पेमेंट्स इंफ्रा में डिजिटल करेंसी को लेकर कितनी क्षमता है, इसका आकलन किया जा सकेगा। इस समय जिस रुपए को हम सभी लेन-देन के लिए इस्तेमाल करते हैं, वह ई-रूपी के लिए अंडरलाइंग एसेट का काम करेगा। ई-रूपी और वर्च्युअल करेंसी अलग-अलग चीजें हैं। डिजिटल करेंसी रुपए  का इलैक्ट्रानिक्स रूप होगा। यह उसी तरह काम करेगा, जैसे आनलाइन पेमेंट सिस्टम काम करते हैं। यानी आप अपने फोन से भुगतान, पैसा ट्रांसफर कर सकेंगे। इससे कैश पर निर्भरता घटेगी। नोट छापने का खर्च बचेगा। नकद लेन-देन के सेटलमेंट में आसानी होगी। अगर विदेशी मुद्रा में लेन-देन करना है तो टाइम जोन के हिसाब से देरी नहीं होगी। चीन अपनी डिजिटल करेंसी के पायलट प्रोजेक्ट को पिछले साल से चला रहा है और दुनिया की पहली ऐसी मुद्रा का श्रेय बहामास को मिला है। दुनियाभर में डिजिटल करेंसी में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। डिजिटल या वर्च्युअल करेंसी के अपने खतरे भी हैं।

केन्द्रीय बैंकों को बिटकॉइन जैसी आमासी मुद्रा की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। बिटकॉइन का इस्तेमाल मनी लांड्रिंग, टैरर फंडिंग और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जा रहा है और सरकारी एजेंसियों के लिए ट्रैक करना काफी मुश्किल है। दरअसल बिटकॉइन का कोई माई-बाप नहीं। एक बार पैसा डूबा तो आप किसी को नहीं पकड़ सकते। जब तक आ रहा है तब तक आ रहा है। इस समय एक बिटकॉइन की कीमत 30 लाख के बराबर है। डिजिटल करेंसी लाकर वर्च्युअल पेमेंट के लिए लोगों को एक विकल्प देना अच्छा है। लेकिन इसके खतरों और चुनौतियों का सामना करने, उनका निवारण करने के उपाय भी हमें ढूंढने होंगे। रिजर्व बैंक के अधिकारी और विशेषज्ञ इस पर गहरा चिंतन मंथन कर रहे हैं। साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी बड़ी चुनौती है। डिजिटल इंफ्राक्ट्रक्चर में हमें साइबर सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी होगी।


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