आर्थिक विकास के साथ आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वदेशी मॉडल प्रासंगिक


भारत देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी ने अपने एक लेख में लिखा था कि गत तीन दशकों में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ देश के सभी नागरिकों को नहीं मिला है। समाज के सबसे निचले वर्ग के आर्थिक विकास के लिए भारतीय मॉडल जरुरी है तभी देश 2047 तक स्वतंत्रता के सौ वर्षों में चीन व अमेरिका का प्रतिस्पर्धी बन कर उनको ललकार सकेगा।

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल | 26 Sep 2021

 

 

भारत के लगभग सभी राजनीतिक दलों के राजनेता देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए चिन्तन नहीं कर रहे हैं जिससे 74 वर्ष की स्वतंत्राता के उपरान्त भी भारत उतनी तरक्की नहीं कर पाया जितनी की करनी चाहिए थी। चुनाव जीतने के उपरान्त अधिसंख्य राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अधिक से अधिक धन एकत्र करने की अपनी लालसा पूर्ति में लग जाते हैं। सभी कालों में सरकारों की सभी आर्थिक विकास योजनाएं अल्पावधि में ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ प्राप्त करने का शिकार होती रही हैं। चूंकि प्रत्येक पांच वर्ष में आम चुनाव होते हैं तो सरकारें भी ऐसी योजनाएं बनाती रहती हैं जिनके परिणाम दो तीन साल में ही प्राप्त हो जाएं जबकि योजनाएं दीर्घवधि के लिए दीर्घ लक्ष्य (आत्मनिर्भरता) को साधने के लिए बननी चाहिए जिसके लिए स्वदेशी मॉडल ही वर्तमान में प्रासंगिक हो सकता है।

जबकि स्वतंत्राता के प्रारम्भ के वर्षों में पं. नेहरु के समय विकास का मॉडल समाजवादी व्यवस्था पर आधारित रहा था तथा बाद में यह समाजवादी व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित हो गया तद्उपरान्त वह वैश्वीकरण व उदारीकरण पर आधारित हो गया। आर्थिक नीतियों पर सरकार का अत्यधिक नियंत्राण होने के कारण देश में व्यापक रुप से भ्रष्टाचार का वातावरण बन गया। वर्तमान में गरीबी को समाप्त करने के लिए उस तरह की आर्थिक योजनाएं बन रही हैं जिनमें गरीबी व वंचित लोगों का विकास हो सके और लोग उत्पादकीय कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकें। यह सब लोग जानते हैं कि जब तक देश का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के तथा देश के विकास के लिए प्रेरित होकर उत्पादकीय कार्य नहीं करेगा तब तक देश की सरकारें गरीबों व वंचितों को वांछित लाभ नहीं दे पायेंगी।

भारत देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी ने अपने एक लेख में लिखा था कि गत तीन दशकों में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ देश के सभी नागरिकों को नहीं मिला है। समाज के सबसे निचले वर्ग के आर्थिक विकास के लिए भारतीय मॉडल जरुरी है तभी देश 2047 तक स्वतंत्रता के सौ वर्षों में चीन व अमेरिका का प्रतिस्पर्धी बन कर उनको ललकार सकेगा।

वर्ष 1991 से शुरु हुए आर्थिक उदारीकरण के कारण ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 1991 में 266 अरब डॉलर था जो आज दस गुना हो चुका है। 1991 में जो अर्थव्यवस्था कमियों से जुझ रही थी वह 2021 में पर्याप्त सुधारों के साथ खड़ी हुई है। अब भारत को वर्ष 2051 तक एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए जो टिकाऊ होने के साथ साथ समस्त देशवासियों को आगे बढ़ने में सहयोग कर सके। 1991 में अर्थव्यवस्था की दिशा व निर्धारण दोनों को ही बदलने की दूरदृष्टि और साहस दिखाया गया था।

भारत के संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। सतत् आर्थिक विकास के लिए हम सभी का दायित्व बनता है कि उस पर मिलकर चिंतन व मनन करें। देश के सभी लोगों को धर्म व मजहब से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए कि बढ़ती जनसंख्या को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाए। भारत में प्रतिदिन 70,000 से अधिक बच्चे अर्थात 2.55 करोड़ प्रतिवर्ष बच्चे जन्म लेने वाली अर्थव्यवस्था में प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति करना बहुत परेशानी का कारण बनता जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहंुचा रही है। क्योंकि हम धरती के ससंाधनों का तेजी से दोहन कर रहे हैं। इस सबसे देश के विकास के लिए योजनाकारों की सभी योजनाएं लगभग बेकार व असफल साबित हो जाती हैं।


पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पीने योग्य जल की मात्रा 2030 तक ही 50 प्रतिशत कम हो जायेगी। पृथ्वी पर लगभग कुल जल का 2.5 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। पानी नहीं तो जीवन कैसा? जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं। यह तो एक संसाधान (पानी) का उदाहरण है। बाकी हवा, अन्न, वस्त्र, दवाईयां आदि का क्या होगा सोचा नहीं जा सकता है। अतः बढ़ती जनसंख्या को रोकना स्वदेशी आर्थिक विकास के मॉडल के लिए जरुरी है तथा यह बात जितनी जल्दी लोगों की समझ में आ जाये उतना ही अच्छा है वरना तो हम राजनेताओं को मात्र दोष ही देते रह जायंेगे। ऐसे राजनेता अपना स्वार्थ पूर्ण करके चलते बनेंगे उस समय तक बहुत देर हो जायेगी। स्वदेशी उपलब्ध वस्तुओं, संसाधान, तकनीक, ज्ञान, विज्ञान का ही प्रयोग करके आत्मनिर्भर बनने की हर सम्भव कोशिश करनी बहुत ही आवश्यक है।  

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