...
हमारे ख़बरचियों ने गुप्त रिपोर्ट दी है कि बहुत जल्द सरकार, सड़कों का कायाकल्प करने जा रही है क्योंकि कुछ वोटर्स लुभावन विशेषज्ञों ने सरकार को सुझाव दिया है कि आने वाले दिनों में सड़कों की हालत में और सुधार किया जाए ताकि सड़क घेरने की कंडीशन में सत्याग्रहियों को इधर-उधर न भटकना पड़े। अब जब लोकतंत्र में अपनी आवाज़ उठाने और धरना-प्रदर्शन करने का सबका फुल्टुस राइट है तो क्या सरकार का कोई फ़र्ज़ नहीं बनता कि वह इनके भी भले की सोचे! अब भले ही इन सड़क घेरुओं की वजह से जनता को परेशानी हो और आधे घंटे का सफ़र दो घंटे में पूरा होता हो, पर उससे क्या! जो परेशान हैं, वो भी जनता, जो सड़क पर है वो भी जनता। हम तो सरकार हैं....हमें अगली सरकार बनाने के लिए इनके भी वोट चाहिए और उनके भी। सो विचार किया गया कि इस विषय पर तुरंत एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए जिसमें सड़कों का कायाकल्प कैसे किया जाए, सड़क किनारे कौन-सी सुविधाएं और बढ़ाई जाएं, जैसे विषयों पर दलगत् राजनीति से ऊपर उठकर सर्वसम्मति से कोई प्रस्ताव लाया जा सके। तय हुआ कि इस बैठक में सड़क घेरुओं को भी आमंत्रित किया जाए ताकि वे भी अपनी बात रख सकें।
तय समय बैठक हुई। सबसे पहले सरकार के बड़े नेता महाशय गैंडामल ने सड़क से संसद तक की महिमा का बखान किया, फिर सड़कों को सुधारने की या कहें आंदोलन फ्रेंडली बनाने की सरकार की मंशा ज़ाहिर की। इसके बाद एक के बाद एक वक्तागण आते गए और सड़कों की महिमा के साथ-साथ आंदोलनकारियों के सड़क प्रेम पर अपने उद्गार व्यक्त करते रहे। अंत में गमछा लपेटे सड़क घेरूओं के ख़ासमख़ास बॉस अवतरित हुए। वो मंच पर जैसे ही आए, लाल पगड़ी वाले ने अपनी टोपी लहराई, सफ़ेद टोपी वालों ने अपना हाथ हिलाया, कमल नैन बाबू उछलने लगे और बाहर खड़े हाथी अपनी महावत अम्मां के साथ ख़ुशी में झूमने लगे। गमछे वाले ने सभी का आभार जताया।
कुल मिलाकर माहौल बदलने लगा। गमछे वाले ने कहा- हम ये करेंगे, हम वो करेंगे। हम संसद को सड़क पर और सड़क को संसद बना देंगे। हालांकि पंचायतें तो हम आज भी कर रहे है पर देश की सड़कों की हालत तो हमसे भी गई-गुज़री है। सड़कों के किनारे फुटपाथ नहीं हैं, जो हैं, उन पर कब्ज़ा है। हमारे लोगों को संडास और नहाने के लिए इधर-उधर भागना पड़ता है। वो तो भला हो ऐसे हमदर्द नेताओं का जिन्होंने चलते-फिरते संडास, पानी के टैंकर, बिजली के कनेक्शन और तंबूओं के बाहर एंबूलेंस खड़ी करवा दीं। पहरेदारी के लिए वर्दी वाले बिठा दिए वर्ना हम भला इतने समय तक कैसे टिक पाते! इसलिए हम तहे-दिल से सरकार का भी शुक्रिया अदा करते हैं जो सुप्रीम फटकार के बाद भी केवल वोटों की ख़ातिर हमें सड़कों से न उठवा रई......। ख़ैर आनन-फानन में एक प्रस्ताव पास हुआ कि अब सड़कों की ही हालत सुधारी जाएगी। सड़क किनारे संडास की लाइनें, पानी की पाइपें और नहाने के शॉवर भी लगाए जाएंगे ताकि किसी भी सड़क-घेरू को कोई परेशानी न आने पाए।
प्रस्ताव पक्ष-विपक्ष से ध्वनि-मत से पारित हो गया। तभी एक नौजवान नेता खड़ा हुआ। कहने लगा- लेकिन जनता कहाँ चलेगी....। तुरंत सरकारी नेता खड़ा हुआ, बोला- अब जनता को सड़क की ज़रूरत ही कहाँ है! बहुतों को कोरोना ने घर में बिठा दिया, बहुतों के पहिए तेल के दाम से थमे पड़े हैं और जो फिर भी न मान रहे, उनके लिए मेट्रो हैं, बसें हैं, तिपहिया वगैरहा हैं। वैसे भी बढ़ते प्रदूषण में भला कोई सड़कों पर निकलता है? जवाब सुन सबने ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ पीटीं। नौजवान नेता को उसकी पार्टी के बड़े नेताओं ने आँखें तरेर कर देखा.....पट्ठे ज़्यादा मत उड़! नौजवान नेता तुरंत अपने आकाओं के तेवर भांप गया। लगा ज़ोर-ज़ोर से ताली पीटने। वो समझ गया कि जब फ़ैसला लेने वाले, समर्थन करने वाले, चट्टों की तरह ताली पीटें तो हमीं क्यूँ नक्कू बने डोलते फिरें........।
.....................................................................................................................................