अंधेर नगरी, चौपट राजा


मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है। यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक में फैसला सुनाते हैं।’

चन्द्र प्रभा सूद | 17 Nov 2021

 

‘अन्धेर नगरी चौपट राजा’ का अर्थ यही है कि राजा यानी शासक मूर्खतापूर्ण और निरंकुश व्यवहार करता है तो वह नगर या देश अन्धेर नगरी कहलाता है। राजा की तरह प्रजा भी लक्ष्यहीन होकर भटक जाती है। वहाँ शासन सुशासन न होकर कुशासन हो जाता है। सभी लोग एक-दूसरे के प्रति असहिष्णु हो जाते हैं। उन्हें किसी की भावनाओं की कद्र नहीं होती। ऐसे देश में लूटपाट, चोरबाजारी, भ्रष्टाचार, दूसरे का गला काटना आदि रोजमर्रा की बात हो जाती है।

एक बार एक हंस और हंसिनी सुरम्य वातावरण में भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में पहुँच जाते हैं। हंसिनी ने हंस से कहा- ’ये किस उजड़े इलाके में हम आ गये हैं? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठण्डी हवाएँ हैं। यहाँ पर हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा।’

भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा- ‘किसी तरह आज की रात इस जंगल में बिता लो, सुबह हम लोग शहर की ओर लौट चलेंगे।’

धीरे-धीरे रात घिर आई। जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा हुआ था। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा था। उसकी आवाज सुनकर हंसिनी ने हंस से कहा- ’अरे! यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। यहाँ तो उल्लू चिल्ला रहा है।’

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया- ’किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यों है? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे, वह तो वीरान और उजड़ा हुआ रहेगा ही।’

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा- ’हंस भाई, मेरी वजह से आप दोनों को रात में तकलीफ हुई, कृपया आप लोग मुझे माफ कर दीजिए।’

हंस ने कहा- ’कोई बात नहीं भैया, आपका धन्यवाद।’

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा पीछे से उल्लू चिल्लाया- ’अरे! यह हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहा है।’

हंस चौंका- ’उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है।’

उल्लू ने कहा- ’तुम झूठ बोल रहे हो, खामोश हो जाओ, ये मेरी पत्नी है।’

दोनों के बीच विवाद बहुत बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्रा हो गये। कई गांवों की जनता आकर बैठ गई। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये और बोले- ’भाई, किस बात का विवाद है?’

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है- ’हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है।’

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और उन्होंने कहा- ’भाई, बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जाएँगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है, इसलिए फैसला उल्लू के ही हक में ही सुनाना चाहिए।’

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा- ’सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुँची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है।’

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया। वह रोने, चीखने और चिल्लाने लगा- ’पंचायत ने गलत फैसला सुनाया है। यह उल्लू मेरी पत्नी पर जबर्दस्ती हक जता रहा है।’

रोते-चीखते हुए जब वह आगे बढ़ने लगा तब उल्लू ने हंस को आवाज लगाई- ’ऐ मित्र हंस, रुको।’

हंस ने रोते हुए कहा- ’भैया, अब क्या करोगे? मेरी पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब क्या तुम मेरी जान भी लोगे?’

उल्लू ने कहा-’नहीं मित्रा, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है। मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है। यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक में फैसला सुनाते हैं।’

इस कथा को लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है कि शासक को अपने राजधर्म का पालन सदा ईमानदारी और सच्चाई से करना चाहिए। उसे नीर-क्षीर विवेकी होना चाहिए। दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए यानी कान का कच्चा नहीं होना चाहिए। उसके लिए पारदर्शिता का होना बहुत आवश्यक होता है। राजा यदि उच्च चरित्रावान होगा तो प्रजा भी तदनुसार आचरण करेगी क्योंकि शासक को पितातुल्य माना जाता है। उसे अपनी प्रजा के साथ सहृदयता और समानता का व्यवहार करते हुए आदर्श स्थापित करना चाहिए।


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