हिंदी अकादमी ने मनायी गणतंत्र दिवस काव्य-संध्या


श्री सिसोदिया ने गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि दिल्ली, देश का दिल है और साथ ही सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी है। भारत की भाषाएं समृद्ध होंगी तो देश की राष्ट्रभाषा हिंदी भी समृद्ध होगी।

मनोज बिसारिया | 23 Jan 2023

 

शनिवार 21 जनवरी दिल्ली के कवित्त-रस प्रेमियों के लिए एक अनूठी शाम रही जब दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा हिंदी भवन सभागार में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। देश के जाने-माने कवि इस कार्यक्रम में शामिल हुए जिनमें सर्वश्री पद्मश्री विभूषित सुरेन्द्र शर्मा, गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना, मंगल नसीम, सुश्री अलका सिन्हा, आलोक यादव, डॉ. कीर्ति काले, दीपक गुप्ता, शहनाज़ हिंदुस्तानी सहित अन्य कविगण भी आमंत्रित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रवीण शुक्ल द्वारा किया गया, वहीं अध्यक्षता श्री सुरेन्द्र शर्मा ने की।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी इस अवसर पर उपस्थित थे। अपने संबोधन में श्री सिसोदिया ने गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि दिल्ली, देश का दिल है और साथ ही सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी है। भारत की भाषाएं समृद्ध होंगी तो देश की राष्ट्रभाषा हिंदी भी समृद्ध होगी। श्री सिसोदिया ने कहा कि प्रतिवर्ष ये कवि सम्मेलन लाल क़िले पर आयोजित किया जाता रहा है, भविष्य में हमारा प्रयास रहेगा कि इसे लाल क़िले पर ही आयोजित किया जाए। वहीं अकादमी के सचिव संजय कुमार गर्ग ने बताया कि राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन गणतंत्र लागू होने के समय से ही किया जा रहा है। भविष्य में अकादमी अन्य गतिविधियों पर भी काम करेगी।

कवि-सम्मेलन का आरंभ कवि ‘तुरंत’ की हास्य कविता ठंडे पानी से नहाने से शुरु हुई जिसमें कवि ने जन्म से लेकर मृत्यु तक नहाने की सैंकड़ों मजबूरियाँ गिना डालीं। वहीं विष्णु सक्सेना के गीतों ने सभागार में मौजूद दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। कवि के साथ-साथ श्रोता भी उनके गीत दोहराते दिखे। कवि आलोक की पंक्तियाँ- अब न रावण की कृपा का भार ढोना चाहता हूँ, आ जाओ राम मैं मारीच होना चाहता हूँ। वहीं डॉ. कीर्ति काले की देश के सैनिकों को समर्पित पंक्तियाँ— भाइयों की भुजाओं पर है भरोसा, सरहदों पर बहनों की राखियाँ बताती हैं, ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। शहनाज़ हिंदुस्तानी की वीर रस से ओत-प्रोत कविताओं ने समां बाँध दिया। मंगल नसीम ने जब कहा कि महदूद उड़ानों में उड़ लेना- उतर आना, पाले हुए पंछियों के अपने पर नहीं होते, तो सभागार देर तक तालियों से गूंजता रहा। संचालक डॉ. प्रवीण शुक्ल की चंद पंक्तियाँ- आन-मान-सम्मान मिटे, एक-एक अरमान मिटे, जिस भूमि पर जन्म लिया है, उस पर ही ये जान मिटे, ने दर्शकों की ख़ूब वाह-वाही लूटी। अपने अध्यक्षीय संबोधन के बाद सुरेन्द्र शर्मा को श्रोताओं के विशेष अनुरोध पर अपनी सुप्रसिद्ध कविता- बुड्ढे का ब्याह सुनानी पड़ी जिसमें श्रोताओं ने जमकर तालियाँ बजाईं।


कार्यक्रम के अंत में हिंदी अकादमी के उप सचिव ऋषि कुमार शर्मा ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में गणतंत्र दिवस की महत्ता पर बोलते हुए कहा कि ये केवल पर्व ही नहीं है बल्कि सभी देशवासियों का गौरव है। कविता, समाज की भाषा और भावना दोनों होती हैं। साथ ही ये हिंदी भाषा का पोषण भी करती है।

आकाशवाणी व दूरदर्शन द्वारा इस कार्यक्रम की विशेष कवरेज भी की गयी।  

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